देवी का प्रसाद
” मैने प्रसाद बना दिया है बस तुम और बच्चे मिल कर पचास पैकेट तैयार कर दो तब तक मैं तैयार होकर आती हूॅं , श्यामा पति विवेक और बच्चों से बोली । ”
” पचास क्यों ? विवेक ने उत्सुकता वश पूछा । ”
” पहले चलो तो वहीं बताती हूॅं । ”
पैकेट ले श्यामा और विवेक कामवाली के मुहल्ले में गये और वहीं थाली में कन्याओं के पैर धुलवा प्रसाद का पैकेट और दक्षिणा दें कन्याओं से प्रणाम कर आशीर्वाद लिया।
कन्याओं के बाद बारी थी एक बालक की , उनके आस पास बच्चों की भीड़ लग गई सबकी बुझी बुझी सी निगाहें खाने के पैकेट पर थीं ।
विधि पूरी कर सब बच्चों से बोली ” आओ तुम सब भी आओ । ”
” अरे मेमसाहब ! ये तो कन्याओं का पूजन है वो भी छोटी उमर की…सब बच्चों को क्यों दे रही हैं ? ”
” चमेली मुझे जिनकी पूजा करनी थी कर ली , अब ये ‘ देवी का प्रसाद ‘ है जिसके हकदार सब बच्चे हैं । ”
प्रसाद का पैकेट हाथ में लेते ही बच्चों की बुझी ऑंखे खिल उठीं ।
विवेक की ऑंखों में उभरा प्रश्न गायब हो गया था ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/10/2021)