देवदूत
” देवदूत”
———
ब्रह्मा ने सृष्टि की जग की,
भाँति-भाँति के जीव बनाए।
दुखियों के दुख-दर्द देखने,
देवदूत पृथ्वी पर आए।।
धरा पर सोचा, देवदूत ने आकर,
कौन दुखी हैं सबसे ज्यादा,
खग नभचर, जलचर, पशु या,
मानववृंद सबसे पूछूँ जाकर।।
उनसे कहा सभी प्राणियों ने,
विश्राम करो तुम थोड़ा,
खुद ही सारे अनुभव कर लो,
देखो सबकी पीड़ा। ।
राय जानकर अच्छा उसने,
कुटिया एक बनाई ,
सुंदर- सुंदर फूल खिलाकर,
उपवन एक रचाई।।
बीता समय जब पंख लगाकर,
मुकूट कलि का पहनकर।
औरों की बात विस्मरित,
खुद को कठिन समस्या।
देव नाम जप भूला उसने,
विचलित हुई तपस्या ।।
व्यूह में फँसा दूत अब देखो,
लक्ष्य विस्मरित हो गई।
तन की इच्छा बलवती हो गई,
भाव – चेतना खो गई।।
देव को फिर जब हुई चिंता,
दूत मेरा कहाँ खो गया।
देखा उसने दिव्यदृष्टि से,
घोर दुःखित वह हो गया।।
ठोकर दिया दूत को उसने,
किया उपद्रव भारी।
दूत को तब फिर याद आ गई,
कर्म प्रतिज्ञा सारी।।
मानव तेरी यही कहानी,
तू ही दूत है रब का।
भटको न तुम अपने पथ से,
करो सेवा जन-जन का।।
मौलिक एवं स्वरचित
© मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
मोबाइल न. – 8757227201