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6 Oct 2024 · 1 min read

देवघर मरघट में

क्या तुमने फिर मुझे बुलाया,
मरघट के सन्नाटे में, प्यारे?
मैं आई हूँ सब छोड़-छाड़,
तुम्हारे पथ पर बन सहारे।

यहीं इसलिए न विलीन हुई,
मैं बूँद बनकर संग तुम्हारे,
क्योंकि बार-बार आना था,
कठिन डगर पर संग तुम्हारे।

तुमने फिर से मुझे पुकारा,
मैं आ खड़ी हूँ मोड़ कठिन पर,
कि इस बार जब इतिहास लिखे,
तो तुम न रहो अकेले पथ पर।

वीरान मरघट, मौन सभा,
फिर क्यों मेरी कथा न बोली?
बिना राधा के शब्द सभी,
हों रक्तहीन, बेमानी बोली।

सुन प्रिय! मैं आई फिर से,
तुम्हारी संगिनी बन चलने,
कोई न कहे कि राधा संग,
बस प्रेम की लय बन झुलने।

मेरी वेणी में अग्निपुष्प हैं,
पर क्यों न इतिहास ने देखा?
तुमने फिर से मुझे बुलाया,
देखो, मैं फिर हूँ अडिग यहाँ।

—–श्रीहर्ष—-

Language: Hindi
1 Like · 34 Views

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