देवकी, तुम माँ नहीं हो सकती –
———————–अरुण कुमार प्रसाद
देवकी, तुम माँ नहीं हो सकती।
नहीं हो सकती तुम माँ,यशोदा की अपेक्षा।
हाँ,तुम माँ हो,
क्योंकि,तुमने किया प्रवृत वसुदेव को।
विचार किया और संतान की,की रक्षा।
किन्तु,तुम माँ नहीं हो सकती
कृष्ण के संस्कारों की।
कृष्ण के देह-सौष्ठव और संकल्पों की।
कृष्ण ने सभ्यता और संस्कृति का
जो विश्लेषण किया और तय किया कर्तव्य।
तुम उसकी माँ नहीं हो सकती।
तुम उसके सर्वांग सुंदर और मोहक तन की
माँ तो हो पर,
तुम उसके शैशवत्व की माँ नहीं हो सकती।
तुम उसके परिपक्व और औदार्य मन के
ऐश्वर्य की माँ नहीं हो सकती।
देवकी, तुम माँ नहीं हो सकती।
और वह कृष्ण!
पुत्र का भ्रम पाल गया जो।
यशोदा के मन,प्राण में।
और तमाम निष्ठुरता की प्रतिमूर्ति सा देखता रहा
यशोदा को,होने हेतु तुम्हारा पुत्र।
किन्तु,तुम उसकी माँ नहीं हो सकती।
कृष्ण के कर्मयोग के ज्ञान।
और,सांख्ययोग के कर्म की प्रवृति।
तुम नहीं हो सकती देवि।
वह यशोदा है,यशोदा है,यशोदा है केवल।
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