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10 Jul 2022 · 3 min read

देने वाला कोई और है !

उस दिन सबेरे 6 बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला। मैं रेलवे स्टेशन पहुंचा , पर देरी से पहुँचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी।
मेरे पास 9.30 की ट्रेन के अलावा और कोई चारा नही था ? मैंने सोचा चलो कहीं चलकर नाश्ता कर लिया जाये ?

मुझे बहुत जोर की भूख लगी थी। मैं होटल की ओर जा रहा था ? अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी ? दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे ? बच्चों की हालत बहुत खराब थी ? कमजोरी के कारण अस्थिपिंजर साफ दिखाई दे रहे थे ? वे बहुत भूखे लग रहे थे ?

छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था ? बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था ? मैं अचानक रुक गया ? दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये ?

उन बच्चों को देखकर मेरा मन भर आया ? सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिये जायें ? मैं उन्हें 5 रूपये देकर आगे बढ़ गया ? तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कि कितना कंजूस हूं मैं ? 5 रूपये में वे क्या खायेंगे ? 5 रूपये में तो एक चाय भी ढंग से न मिलेगी ?

स्वयं पर शर्म आयी और वापस लौटा ?
मैंने बच्चों से कहा कुछ खाओगे ?
बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गये ? मैंने कहा बेटा मैं नाश्ता करने जा रहा हूं ?तुम भी कर लो ? वे दोनों बहुत भूखे थे , तुरंत तैयार हो गये ?

उनके कपड़े गंदे होने के कारण होटल वाले ने उनको डांट दिया और भगाने लगा। मैंने कहा भाईसाहब उन्हें जो खाना है वो उन्हें खाने दो , पैसे मैं दूंगा ?

होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा ? उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी। बच्चों ने नाश्ता , मिठाई व लस्सी मांगी ? सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया। बच्चे जब खाने लगे तो उनके चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी |

मैंने बच्चों को कहा बेटा अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिये हैं उसमें से 1 रूपये का शैम्पू लेकर हैण्डपम्प के पास नहा लेना | और फिर दोपहर और शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना |और मैं नाश्ते के पैसे देकर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर निकल गया |

वहां आसपास खड़े लोग मुझे बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे। होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे। मैं स्टेशन की ओर निकला। मेरा मन थोड़ा भारी लग रहा था। मन उन बच्चों के बारे में सोचकर दु:खी हो रहा था ।

रास्ते में मंदिर आया। मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा ,”हे भगवान,” आप कहां हो ? इन बच्चों की ये हालत ? और ये भूख देखकर आप कैसे चुप बैठ सकते हो ?

भगवान ने कहा कि पुत्र अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था ?
क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच से किया ?

मैं स्तब्ध रह गया। मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गये ? ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो ?

मुझे समझ में आ चुका था कि हम सिर्फ निमित्त मात्र हैं , उसकी लीला अपरंपार है ? भगवान हमें किसी की मदद करने तब ही भेजता है जब वह हमें उस काम के लायक समझता है । किसी की मदद को मना करना वैसा ही है जैसे भगवान के काम को मना करना ।

Language: Hindi
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