देते- देते रह गए गुलाब
मेरा जीवन है बंद किताब,
तुमने कुछ पन्ने ही पढ़े ।
आँसूओ से भीगे हुए पन्ने,
वर्षों से यूँ ही बंद पड़े ।।
सबकों मुस्कान देते – देते,
अधूरे रह गए कुछ ख्वाब ।
वो मिले थे बीच राह में,
देते-देते रह गए हम गुलाब ।।
हमनें जिसके लिए बढ़ाया,
विश्वास भरा एक हाथ ।
भीड़ में वो कहीं खो गया,
मिल न सका उसका साथ ।।
पत्तो पर बिखरी शबनम बूँदे,
चमकती जैसे हो मोती ।
पास आकर हाथ लगाते,
बूँद एक पानी की होती ।।
जब भी नजरें मिलती थी ,
लगता था हो स्नेह समुंदर ।
बैठ किनारे हम सुकून पाते ,
दे न पाए उन्हें गुलाब लेकर ।।