देती है मुझे मौन वेदना
शब्दों की तराश करता हूँ,
गीत नए-नए ही बुनता हूँ,
जिन राहों में बिखरे काँटे हों,
ऐसी डगर ही चुनता हूँ।
है मेरी दु:साध्य साधना ,
देती है मुझे मौन वेदना ,
मन के इस रिक्त कोश को,
नित नए गीतों से भरता हूँ।
जब भी मैं लघुता को भाँपा,
शब्दों से ही ऊँचाई नापा,
शब्दों के ही रूप जाल से,
जीवन की सँवार करता हूँ।
जीवन के दिन विषम सम हैं,
कभी ख़ुशी तो कभी ही ग़म है,
छोटी ही ख़ुशियाँ तलाश कर,
ग़म का ही प्रशमन करता हूँ।