देती उपदेश औ’चलाती सरकार है
रण में गरजती है नभ से बरसती है,
मौत बन दोनों हाथ लेती तलवार है।
विदुषी बने कभी वो तपसी बने कभी वो,
देवों को बचाने लेती देवी अवतार है।
और जो अभागे देश बेचें धर साधु वेश,
देती उपदेश औ’चलाती सरकार है।
महिमा कहाँ लौ कहें वेद-शास्त्र भरे रहें,
मान-सम्मान से बनाती अधिकार है।
दीपक चौबे ‘अंजान’