देख लेना तुम
मेरी चाहत के दरिया में उतरकर देख लेना तुम।
यही मंज़र मेरे दिल मे ठहरकर देख लेना तुम
मेरे दिल में निकासी का नहीं कोई भी दरवाजा।
मेरे सीने की धड़कन से निकलकर देख लेना तुम।।
नहीं अल्फ़ाज़ जो बतलाए दिल की बेकरारी को।
मेरी बेताब बाँहों में बिखरकर देख लेना तुम।।
सदा सुनकर तुम्हारे पास दौड़ी दौड़ी आऊँगी।
जरा सा मेरी यादों में मचलकर देख लेना तुम।।
अगर मेरी मुहब्ब्त का नहीं तुमको है अंदाज़ा
किसी भी हाल में दिलवर परखकर देख लेना तुम
ये पत्थर दिल लिए कब तक फिरोगे यूँ जमाने में।
कभी तो प्यार की खातिर पिघलकर देख लेना तुम।।
अचानक मैं नज़र आऊँ न करना गुफ्तगू मुझसे
निगाहें सब बता देंगी पलटकर देख लेना तुम।।
लगा पाओ न अंदाजा सनम तुम ज्योति की चाहत
निकल जायेगा दम मेरा बिछड़कर देख लेना तुम
✍? श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव