देख लेते तेरी भक्ति में
चल आज उतार देता हूँ शराफ़त का लबादा।।
देख लेते तेरी भक्ति में मज़ा कितना ज़्यादा।।
ज़िंदगी की बिसात में मैं तेरी कठपुतली ठहरा
तू बादशाह बनकर जैसा चलाये चलता प्यादा।।
आज इतना समझा दे मूझकों जीवन क्यों देता
भक्तिमय जीवन कर मोक्ष का कर मुझसे वादा।।
रोज अपनी तम्मनाओं का खून होते देखता रहा
इच्छाओं का क़त्ल का नहीं रखता था मैं इरादा।।
बता तेरी बन्दगी में तू मेरी रजा तक नहीं पूछता
जितना तुझको सोचा उतना लगता नहीं तू सादा।।
मुर्दों के इस शहर में तू भी मुर्दा दिल हो गया क्या
बता मुझे नहीं मरमरकर जीने पे क्यों करता आमादा।।
अशोक सपड़ा हमदर्द