देख रहा हुं
देख रहा हुं
घुलता सा प्याला देख रहा हु होता अंधियारा देख रहा हु
देख रहा सदियों का तरपण सांसो को ज़मते देख रहा हुं
राम का तरकश तान बांध रावण हाथों से देख रहा हुं
मरते दम जीते मरतो को नित आंखे मुंदे देख रहा हुं
फतह की कश्ती पाल घाट पर पतवारो को फेंक रहा हुं
भुख की रोटी लाचारी मे नित अंगारो पर सेक रहा हुं
देख रहा हुं जलती गाथाए हाथ बांधे सब लेख रहा हुं
भीष्म हट , पाण्डव प्रतिज्ञा भुली हुई सी देख रहा हुं
भूल रहा सीता हरण अब चीर हरण नित देख रहा हुं
कृष्ण बुलाती नारी को हर राज्यसभा से देख रहा हुं
चमक प्रभा से अंधकार मे अौझल सबको देख रहा हुं
गिरते मानव उठती सभ्यता मरी आत्मा देख रहा हुं
दूर होती फूलो की महक कांटो से सटते देख रहा हुं
मानव ह्रदय के भीत घात को सहते सहमे देख रहा हुं
घुटती ममता स्वार्थ प्रेम को सत्य होते देख रहा हुं
संस्कार-बोझ, हीन-मन गिरता आचार अब देख रहा हुं
दबती आवाज घुटते मन को मन आँखो से देख रहा हुं
लम्बे हाथ बंधते हुये और ना-दान को तुलते देख रहा हुं
देख रहा बंधे भाव मन हीन आभाव को देख रहा हुं
तपती लहरो को सागर के तटो पर मरते देख रहा हुं
घुलता सा प्याला देख रहा हु होता अंधियारा देख रहा हु
देख रहा सदियों का तरपण सांसो को ज़मते देख रहा हुं