देखो रुत बंसती मस्तानी आई – डी के निवातिया
दिनांक : ५ फरवरी
दिवस : शनिवार
विधा : कविता
विषय : बसंत
शीर्षक : देखो रुत बंसती मस्तानी आई !!
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देखो रुत बंसती मस्तानी आई
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छटा कुहासा, सूरज निकला
पीली धूप स्वर्णिम बिखराई,
पिली-पिली सरसों पुष्पित,
खेतों में भी फसलें लहलाई
गुंजन करते भँवरे निकले
तितलियों ने भी ली अंगड़ाई
सर सर करती मलयज पवन
नदियों झूम झूम के लहलाई
ढोल मृदंग बजे उठे फाग के,
गोरी ने भी पायल छनकाई,
सुन कोयल की कूक प्यारी
तन मन में है अगन लगाई,
बीत गया पतझड़ का मौसम
देखो रुत बंसती मस्तानी आई !!
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स्वरचित – डी के निवातिया