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26 May 2021 · 1 min read

देखो बरखा की रुत आयी।

देखो बरखा की रुत आयी।
रिमझिम रिमझिम नर्स रही हैं, धरती पर अमृत की बूंदे।
कन कण इस कृतज्ञ धरा का पान करे इसका और झूमें।
इसका कोई जोड़ नहीं है जो सुगन्ध सोंधी लहराई।
देखो बरखा की रुत आयी।
नदी नालों में सरपट दौड़ें जलधारा बनके जलधावक।
वसुंधरा की अद्भुद वीणा छेड़ रहे चंचल जल शावक।
सिहरन व रोमांच है ऐसा पुलकित धरती ले अंगड़ाई।
देखो बरखा की रुत आयी।
बरखा संग देखो समीर भी करता कैसी चुहलबाजियां।
निर्मल होकर घूम रहा है भुला अंधड़ और आंधियां।
सब है शीतल और सुवासित पछुवा हो या हो पुरवाई।
देखो बरखा की रुत आयी।
काले मेघ हैं दैवी प्याले बरखा जैसे सुरा हो गयी।
आलिंगन सावन का पाकर कितनी कोमल धरा हो गयी।
तरसी हुई व्यथित धरती ने खुलकर अपनी प्यास बुझाई।
देखो बरखा की रुत आयी।

Language: Hindi
12 Likes · 1 Comment · 325 Views
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