देखो न मुझ से रूठ के दिलबर चला गया — गज़ल
देखो न मुझ से रूठ के दिलबर चला गया
अब लौट कर न आएगा कहकर चला गया
कैसे पकड़ सके जिसे रब ने बचा लिया
पैकान से परिंदा जो उड कर चला गया
जो उम्र भर जुदा रहा गम ले गया उसे
वो रूह मुझ को दे गया पैकर चला गया
नजरें जिसे थी ढूंढती दिन रात जाग कर
वो ख़्वाब में आया मुझे छूकर चला गया
कठपुतलियाँ हैं हम यहाँ क्या हाथ अपने है
बस वक्त ले गया था जिधर उधर चला गया
जो उम्र भर जुदा रहा गम ले गया उसे
वो रूह मुझ को दे गया पैकर चला गया
रिश्तों को तार तार होते देर क्या लगी
सैलाब नफरतों का था आकर चला गया
बचपन मेरा ले आओ बुढ़ापा न चाहिए
ये चाल वक्त कैसी दिखा कर चला गया