देखो जग सारा जागा है
उषा की आहट पाकर
तिमिर डरकर भागा है
तुम भी जागो हे मनुज
देखो जग सारा जागा है
अठखेली करती दिनकर किरणें
पोखर में संग वारि के
देखो कमल नयन चितवन से
चंचल हैं किसी ग्राम कुमारी के
अंबर पे था जो तारों का बिछौना
भोर ने आकर समेट लिया
गई विभावरी आई दिवस की बेला
हिम-बिंदुओं ने अवनि को लपेट लिया
उदधि के गर्भ से निकला
अरुणमय वो वृत्तकुमार
हुई विदाई निशा दुल्हन की
डोली उठाओ अ कहार
नभ पे छाई रक्त सी लाली
मानों कोई शरमाया हो
अपनी रूप राशी को देखकर
प्रकृति कुमार इतराया हो
इस मधुर समय में कैसे
मधुमाति सुरभि पवन टरे
देखो कितना सुंदर मृगछौना
अपनों के साये में चरे
इस वसुधा पर सुबह की बेला
जितनी सखे निरखती है
ऐसे मन-मोहक दृश्य देखने को
देवकन्या भी तरसती है
पर अ नर तुम चेतना शून्य
तेरी आँखें क्यूँ स्वप्न विचरती है
खोया क्यूँ है उस कल्पित लोक में
देख धरणी पर प्रभु-माया बरसती है
सोनू हंस