देखो खिली मन की कली।
देखो खिली मन की कली……!
मैं चंचला चपला अति
हूं कल-कल हर्ष सी बहती नदी।
मैं प्रीत के मधुर नाद सी
प्रेमी युगल संवाद सी।
मेरा नाम क्या तुमको है पता?
मैं खुशरंग लता लतिका मंजरी और वल्लरी।
मैं अल्हड़ नटखट दामिनी
पूनम सहेजे ज्यूं यामिनी
कभी कामिनी कभी गजगामिनी।
खिली सोम्य सुरभित हृदय कली
नाज़ोंसे तेरे आंगन पली,
बाबुल न तू अब पकड़ मुझे,
तेरी चंचल बुलबुल उड़ चली।
होकर सवार ले उल्लास उमंग,
मैं पवन वेग से जा मिली।
आज लेकर छत्र मैं हाथ में,
हूं प्रवाह अपना मापती।
देखो, मेरे मनोबल से ,
यह गतिवान पुर्वा हांफती।
मैं उड़ चली मैं बह चली,
अविराम खुशियों की गली।
नीलम शर्मा