देखों, हम दलितों का, ऐसा यह मोहल्ला है
तन है मैला चाहे मगर, हर दिल यहाँ सत मौला है।
नहीं मन में छल कपट,नहीं पहने नकली चोला है।।
ऊंच- नीच का यहाँ कहीं, नहीं कोई बोलबाला है।
देखों हम दलितों का, ऐसा यह मोहल्ला है।।
तन है मैला चाहे मगर——————-।।
कहते हो अछूत जिसको, यह उनका वास है।
आजाद देश में भी जिनको, समझते दास है।।
लेकिन वतनपरस्ती का, यहाँ पर जलजला है।
देखों हम दलितों का, ऐसा यह मोहल्ला है।।
तन है मैला चाहे मगर——————।।
जिनके दर्शन को, अपशुकून माना जाता है।
पूजाघरों में जिनका, प्रवेश रोका जाता है।।
हर जाति- धर्म को सम्मान, देता यह मोहल्ला है।
देखों हम दलितों का, ऐसा यह मोहल्ला है।।
तन है मैला चाहे मगर—————–।।
जिनके घरों का अन्न-जल, ग्रहण नहीं करते हैं।
बराबरी में जिनको, बैठाना पसंद नहीं करते हैं।।
सच में मानवता का स्वर्ग, हमारा यह मोहल्ला है।
देखों हम दलितों का, ऐसा यह मोहल्ला है।।
तन है मैला चाहे मगर——————।।
बने हैं सरकारी अधिकारी, ऐसे हमारे मोहल्ले से।
जनप्रतिनिधि और मंत्री, बने हैं हमारे मोहल्ले से।।
बुद्धि- मेहनत-गुणों की खान, हमारा यह मोहल्ला है।
देखों हम दलितों का, ऐसा यह मोहल्ला है।।
तन है मैला चाहे मगर———————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)