देखे भी तो कैसे? (कविता)
देखे भी तो कैसे? (कविता)
वीरान बस्ती में
अब जिए भी तो कैसे?
बंजर हो गई है मिट्टी
बीज अब बोये भी तो कैसे?
फूलों से चोट खाकर
बिखर गए है दिल के टुकड़े
काँटों से लिपटकर
अब रोये भी तो कैसे?
रिश्ते न थे रेत जैसे
मुट्ठी से निकल गए
स्नेह भरी नजरों से
अब देखे भी तो कैसे?
बरखा में जल गया था
मेरे दिल का आशियाना
बिखर गए थे तिनके
अब चुनते भी तो कैसे?
अरमानों की लेखनी से
मैंने लिखी थी गीत अब तक
वो पत्थर के बुत बन गए हैं
सुनते भी तो कैसे?
मिला है बिगड़ी हुई नसीब
मुझको ऐ जिंदगी !
अपनी हाथों की लकीरों को
देखे भी तो कैसे?