देखें
कशिश है निगाह में उसके
जी करता है के मुसलसल देखें
गफलत ये भी है मेरी निगाहों में
के उसे आज देखें या कल देखें
मुझे उसकी आँखें आज भी याद हैं
वैसे उसके हैं मैंने कितने हमशकल देखें
मुमकिन है के देखकर भरम हो जाए
इरादा है उसे सम्भल – सम्भल देखें
इल्म है मुझे के वो भी देखता है मुझे
पहले उसका या पहले अपना पहल देखें
गुत्थी सुलझ गयी है ये संसय है मुझे
उसका सवाल देखें या अपना हल देखें
-सिद्धार्थ गोरखपुरी