देखूँ तो वो सामने बैठा हुआ है – संदीप ठाकुर
देखूँ तो वो सामने बैठा हुआ है
सोचूँ तो इक मीलों लम्बा फ़ासला है
नाम तन्हाई ने तेरा लिख दिया है
हर कोई चेहरे को मेरे पढ़ रहा है
छू लिया था ख़्वाब में तुम को किसी ने
आज तक वो ख़ुद को मुजरिम मानता है
मुद्दतों पहले मैं उस का हो गया पर
वो अभी मुझ को दुआ में माँगता है
याद तेरी दिल पे छाई है घटा सी
तेज़ है बरसात जंगल भीगता है
क्या कभी पहले नहीं रूठा किसी से
मुस्कुराता क्यों है गर मुझ से ख़फ़ा है
चाँद की किरनें हुई जाती हैं रेशम
और सन्नाटा भी गहरा हो चला है
वो मुलायम रेशमी लहजा किसी का
मेरी ग़ज़लों में नदी सा बह रहा है
संदीप ठाकुर