देखा जो उसे तो बस देखता रहा
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देखा जो उसे तो बस देखता रहा
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देखा जो उसे तो बस देखता रहा,
जी भर के बहुत ज्यादा ताकता रहा।
पल भर भी न सो पाया याद में पड़ा,
नींदों से बढ़ी दूरी जागता रहा।
रह पाऊं न पल दो पल यार के बिना,
दोनो हाथ जोड़े दिल मांगता रहा।
छायी इस कदर तन-मन भूलता नहीं,
बीती जो घड़ी उसको भोगता रहा।
मनसीरत हुआ पागल प्रेम की डगर,
मन ही मन परी सी को सोचता रहा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)