देखना किसी दिन खरच दूंगी तुम्हें !
बड़ी मंदी का दौर है
देखना किसी दिन
छुट्टा समझ के खरच दूंगी तुम्हें
फिर हाय-हाय करते बैठना
रोना या छाती पीटना
कृष्ण तुम्हें खुद को सत्यभामा
कर दूंगी किसी दिन, फिर झेलना
कोई रुक्मिणी न आयेगे
जो तुम्हें तुलसी दल से बचाएगी
सारी सखियाँ मंदी की मारी है
अब रुक्मिणी भी तो बेचारी है
तुम्हारी भी धोती अब जींस पे नही भारी है
और जींस की जेब पे तो
सरकारी अस्तुरे की मार दोधारी है
देखना किसी दिन खरच दूंगी तुम्हें !
…सिद्धार्थ