लंका दहन
देखते ही ये बात सम्पूर्ण द्रुत गति से फैल गई
सैनिकों ने एक बन्दर को पकड़ कर लाया है
उस बन्दर का एक झलक पाने के लिए असुर
बहुत संख्या में महल के पास चल कर आया है
जहाॅं दरबारियों में इस बात का कौतूहल है
तो उनके चेहरे पर भी अन्दर से भय छाया है
पता नहीं कहाॅं से किसका रूप धारण कर
यह बंदर लंका नगरी में अभी अभी आया है
दरबार में बंदर खड़ा है इस तरह अकड़ कर
जैसे उसे किसी बात का कहीं ना कोई डर हो
लगता तो है महाराज रावण के दरबार में नहीं
बल्कि अभी भी वह खड़ा अपने घर पर हो
महाराज के आदेश से इस बंदर की पूॅंछ में
कपड़ा लपेटकर आज आग लगायी जाएगी
लंका नगर की सड़कों पर दौड़ा दौड़ा कर
मनोरंजन के लिए इसकी पूॅंछ जलाई जाएगी
आग की लपटों से जल जब तड़प तड़प कर
बेचारा यह बंदर आज अपना प्राण गंवाएगा
भविष्य में यह गाथा सुनने के बाद कोई और
लंका की ओर कभी ऑंख उठा नहीं पाएगा
उन्हें क्या पता कि इस भयंकर खेल में आज
इस बंदर को भी बहुत आनन्द आने वाला है
बहुत जल्द वहाॅं पर उपस्थित सभी असुरों के
चेहरे से मुस्कान भी अब छीन जाने वाला है
बन्दर भरे दरबार में अभी भी चुपचाप है खड़ा
वहाॅं सब स्वयं को समझ रहा है बंदर से बड़ा
पूॅंछ में लपेटने को ढ़ेर सारा कपड़ा आया है
सभी के चेहरे पर वहाॅं मोहक मुस्कान छाया है
तेल भिंगोया कपडा़ पूॅंछ पर लपेटा जा रहा है
सबमें जल्दी मची है देखने को अनोखा खेल
बन्दर की पूॅंछ धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही है
इधर लपेटने वाला कपड़ा भी सब सोखा तेल
बढ़ती हुई पूॅंछ में कपड़ा लपेटते लपेटते तो
अब सैनिक भी वहाॅं पूरी तरह थक चुका है
पर बन्दर अपनी पूॅंछ को तेजी से बढ़ा कर
और कपड़ा लपेटवाने को वहाॅं पर रुका है
अभी और लाया गया है तेल भिंगोया कपड़ा
फिर भी कार्य अभी भी दिख रहा है अधूरा
कपड़े से अगर पूरी तरह नहीं ढ़का गया तो
फिर इस बंदर का लक्ष्य तब कैसे होगा पूरा
अब तक थक कर चूर हो गए हैं सभी सैनिक
अन्त में लगा दी गई है बन्दर की पूॅंछ में आग
धीरे-धीरे तेल सना हुआ कपड़ा जलने लगा
आग धधकते बन्दर वहाॅं से गया खुले में भाग
आग की लपट संग बन्दर की कलाबाजी देख
सभी तो वहाॅं पर एकदम आश्चर्य में था पड़ा
पलक झपकते ही बंदर लंका के महल पर
आग की तीव्र उठती लपटों के संग था खड़ा
पूॅंछ में आग लगते ही क्रुद्ध बन्दर महल के
हर कोने में उछल उछल कर आग लगा रहा है
और देखते ही देखते पूरे सोने की लंका को
अपनी जलती हुई पूॅंछ से ही धधका रहा है
देखते ही देखते बढ़ गई है यहाॅं पर हलचल
सम्पूर्ण नगर में मच गया है हाहाकार चहुॅंओर
इस आग से कहीं उनका घर भी ना जल जाए
अपने घर बचाने सब दौड़े अपने घर की ओर
लंका के सोने का महल को आग में जलते हुए
जब अपनी खुली ऑंखों से स्वयं रावण ने देखा
अब तो उनका स्वर भी साथ नहीं दे रहा था
और साथ में चेहरे पर खींची थी चिन्ता ने रेखा
बन्दर अभी भी अपनी पूॅंछ में आग को लिए
बहती हवा के संग संग स्वयं भी बह रहा था
बन्दर की इस चाल पर तो सब जैसे तैसे उसे
मन भर कोसते हुए अपशब्द ही कह रहा था
दरबार में देर तक चुप रह न सकी मंदोदरी
अब ऐसे शांत होकर उसे नहीं है पड़े रहना
जिस स्वामी के एक दूत में ही इतना दम हो
उसके स्वामी के बारे में फिर क्या कहना
अब तो आपका मन हो गया होगा पूरा ठंडा
या अभी कुछ और प्रश्न बचा है मन में शेष
अगर कुछ इच्छा रह गई है तो शीघ्र ही वो
अपना दूत भेज दूर कर देंगे क्षण में क्लेश
स्वामी अभी भी समय है आपके हाथों में
एक बार आप पुनः इस पर विचार कीजिए
वह मानव नहीं हैं तीनों लोक के हैं स्वामी
उनकी स्त्री को छोड़ अपने पर उपकार कीजिए