देखते आ रहे दृश्य ये सर्वदा,
मुक्तक
देखते आ रहे दृश्य ये सर्वदा ,
अश्रु आँखों में छलके सदा सर्वदा ।
बाढ़ लीला मचाये भयंकर प्रलय ,
स्वप्न हैं टूटते झेलकर आपदा ।
रेवड़ी बाटते हो हमें नोच कर ।
राज पर राज हो फ़ेस ये चेंज कर ।
गरजते बरसते बादलों की तरह ,
चेतना जागती क्रोध ये देख कर ।
“डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव”प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष,
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
मौलिक रचना