दृष्टि प्रेम पथ
अक्सर कुछ कुछ सुना है और कुछ कुछ जीवन के अनुभव से जाना है , दृष्टि ही सृष्टि का निर्माण करती है । वही दृष्टि क्या प्रेम पथ पर अडिग पथिक के लिए साधन मात्र नही है । और क्या वही दृष्टि वेर भाव को तजने का स्तोत्र मात्र नही है । स्वयमेव विचार कीजिएगा और जानिएगा ।
सहज दृष्टि करुणा है प्रेम है
मानव मे महामानव का प्रादुर्भाव है ।।