” दृष्टिभ्रम “
कोहरे के धुंधलेपन में
दूर दिखता क्षितिज
मन की धुंधली
आशाओं सा धुंधला क्षितिज ,
आँधियों के गहरे कणों में
ढ़कता क्षितिज
बची इच्छाओं के कणों सा
किरकिराता क्षितिज ,
तेज दुपहरी के ताप में
तपता क्षितिज
मृगतृष्णा की चाह में
आशान्वित क्षितिज ,
मेरी तरह आस लगाये
बैठा क्षितिज
मिलन के पल का
प्रतीक्षारत क्षितिज ,
मैं तुम्हारे जैसी हूँ
तुम मेरे जैसे क्षितिज
लोगों को भ्रमित करते
हम दोनों क्षितिज ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 24/09/2020 )