*दृश्य कुहासा*
दृश्य कुहासा
नयन निहारे कैसे उसको,
कोहराई सी तो छाई है,,
कर श्रंगार बदली धरती से,,
मिलने को भी आई है,,
चारों तरफ उजला कम,,
धुंध ही धुंध दिखाई है,,
हरियाली पर है शबनम,,
धरती ओस ने भिगाई है,,
तरल तरल जल ठहरा,,
आकाश बिम्ब दिखाई है,,
मनोरम दृश्य तरुवर,,
मद्धम रोशनी फैलाई है,,
जल क्रीड़ा का लुत्फ,,
पर मौषम हरजाई है,,
नीलगगन मनमोहित हो,,
प्रकृति दुल्हन सजाई है,,
बाटिका मध्य कुटिया,,
मन को बहुत सुहाई है,,
कुहरा है गर रिश्तों पे,,
मनु ने प्रेम जोत जलाई है,,
मानक लाल मनु