दूसरे का चलता है…अपनों का ख़लता है
दूसरे का मग़रुर होना चलता है
मगर अपनों का ग़ुरूर ख़लता है ।
दूसरे का अनर्गल प्रलाप चलता है
मगर अपनों का बुरा बोलना ख़लता है ,
दुसरे माल खायें पकवान खायें चलता है
मगर अपनों का भूखा रहना ख़लता है ,
दूसरे जालसाजी करें चलता है
मगर अपनों का कपट ख़लता है ,
दूसरे झूठ का पुलिंदे हों चलता है
मगर अपनों का असत्य ख़लता है ,
दूसरे डाका डालें डकैती करें चलता है
मगर अपनों का चोरी करना ख़लता है ,
दूसरे मतलबी हों स्वार्थी हों चलता है
मगर अपनों का खुदगर्ज़ होना ख़लता है ,
दूसरे प्रेम का पाखंड करें चलता है
मगर अपनों के प्रेम का ढ़ोंग ख़लता है ,
दूसरे जी भर कर बेईमानी करें चलता है
मगर अपनों का थोड़ा भी धोखा ख़लता है ,
दूसरे गर अपने हो जायें तो चलता है
मगर अपनों का पराया होना ख़लता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )