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1 Feb 2024 · 1 min read

दूसरे का चलता है…अपनों का ख़लता है

दूसरे का मग़रुर होना चलता है
मगर अपनों का ग़ुरूर ख़लता है ।

दूसरे का अनर्गल प्रलाप चलता है
मगर अपनों का बुरा बोलना ख़लता है ,

दुसरे माल खायें पकवान खायें चलता है
मगर अपनों का भूखा रहना ख़लता है ,

दूसरे जालसाजी करें चलता है
मगर अपनों का कपट ख़लता है ,

दूसरे झूठ का पुलिंदे हों चलता है
मगर अपनों का असत्य ख़लता है ,

दूसरे डाका डालें डकैती करें चलता है
मगर अपनों का चोरी करना ख़लता है ,

दूसरे मतलबी हों स्वार्थी हों चलता है
मगर अपनों का खुदगर्ज़ होना ख़लता है ,

दूसरे प्रेम का पाखंड करें चलता है
मगर अपनों के प्रेम का ढ़ोंग ख़लता है ,

दूसरे जी भर कर बेईमानी करें चलता है
मगर अपनों का थोड़ा भी धोखा ख़लता है ,

दूसरे गर अपने हो जायें तो चलता है
मगर अपनों का पराया होना ख़लता है ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )

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