दूषित हवा
वानरपुरा गाँव में रामचरित मानस का पाठ चल रहा था, पंडित जी रामचरित मानस के दोहे बहुत ही रस और भावुकता के साथ पड़ रहे थे । मंदिर की छत पर लगी तुरई की आवाज़ से आसपास के गाँव में भी अवाज़ गूंज रही थी जिससे वैशाख की तपती लू में भी आसपास का वातावरण भक्तमय हो रहा था ।
आसपास के गाँव के अलावा दूर-दूर के लोग भी पंडित जी की मधुर वाणी में रामायण कथा सुनने के लिए आ रहे थे। कोई अपने साथ गेंहू, कोई खरबूजा, कोई केला, कोई पपीता आदि-आदि चढ़ावा अपने साथ लाते और कथा मंच के पास रखे श्री कलश के पास उसे पूर्ण श्रद्धा के साथ चढ़ा देते । भक्तगण कथा वाचक पंडित जी एवं कथा मंच के सामने शीश नवाकर, मंदिर की जमीन पर बिछी लाल-सफेद दरी पर बैठकर भावविभोर होकर पंडित जी की वाणी से रामकथा सुनते । जब कोई मार्मिक प्रसंग आता तो भक्तों की आँखें भर आती और जब लंका दहन या हनुमान जी का प्रसंग आता तो भक्तों के चेहरे वीर रस से लाल रंग से चमक उठते। राम कथा सुनते हुए भक्त इतना मदहोश या खो जाते कि हर प्रसंग मे उनकी ऐसी मनोस्थिति होती, जैसे वो उसी काल में पहुंच गए हो और काल का हिस्सा बन चुके हो। जब अयोध्या कांड में राम वनवास और भरत मिलन प्रसंग आया तो माहौल ईतना भावुक हो गया कि सायद ही कोई ऐसा भक्त था जिसकी आखों में आसूं ना हो और भक्तों की यही स्थिति सीता जी की ससुराल विदाई के समय थी।
“ वास्तव में राम कथा की यही प्रासंगिकता है कि किसी भी काल का मानव समाज इससे अछूता नही है फिर चाहे प्रारम्भिक समाज हो या आधुनिक समाज। हर काल में समाज मे शोषण, चारित्रिक दुराचार और शक्ति का दुरुपयोग एवम रिस्तो में टकराव होता रहा है। रामायण की सबसे खास बात यह है कि यह कथा समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए युद्ध और विरोध की शिक्षा नही देती है बल्कि प्रेम एवं सामाजिक रिश्तों की मर्यादा एवम सम्मान के द्वारा उन्हें पुनः व्यवस्थित करने की कोशिश करती है। अतः रामायण लोगों को सामाजिक कर्तव्य के साथ साथ सामाजिक रिश्तों का मरमत्व भी सिखाती है। और यह बताने की कोशिश करती है कि समाज में उंच-नीच, जाति-पाति एवम सम्प्रदाय का कोई स्थान नही है। और समाज का हर व्यक्ति चाहे वह मंथरा हो,केबट हो,सबरी हो या फिर छोटी सी गिलहरी सब के सब बहुत उपयोगी है और उनके बगैर सहयोग के किसी भी बुराई पर जीत हासिल नही की जा सकती। वास्तव में मानव इतिहास का कोई भी ऐसा पक्ष नही जिसमे शोषण ना हो,जिसमें विवशता ना हो जिसमें अत्याचार ना हो । इन्ही सब विषयों के खिलाफ रामायण एक संगठित और आदर्शरूपी आवाज़ बनकर उभरती है, जिसे सुनने वाले मनुष्य की आँखें वरवस ही भर आती है।‘
वानरपुरा गाँव मुख्य शहर से काफी दूर वसा हुआ गांव है। एक प्रचलित मान्यता के अनुसार रामायण काल मे इस गाँव मे हनुमान जी वानर-भालू-लंगूरों और अन्य जंगली जानवरों के साथ खेला करते थे और अपनी कलाओं का अभ्यास करते थे। अतः इस गांव के आसपास बन्दर-लँगूर-भालू आदि जंगली जानवर रहने लगे जिस कारण इस गाँव का नाम वानरपुरा गाँव पड़ गया था। यहाँ पर गांव वसने के वाद हर साल वैशाख के महीने में हनुमान मंदिर पर रामकथा का पाठ होता और साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए मेले का भी आयोजन होता था। क्योकि वैशाख के महीने तक, खेत खलिहान का काम पूर्ण हो जाता है और फिर सूरज भी अपनी तपिस के उच्चतम बिंदु पर होता है जिससे गर्म गर्म लू चलती है। इससे बचने के लिए गाँव के लोग अपने कच्चे-पक्के घरों में छिपे रहते हैं। एक प्रकार से खेत-खलिहान के काम से यह अवकास का वक्त होता है। साथ ही पूरे साल खेत मे काम करते करते सभी किसानों के अंदर एकलयता या नीरसता जैसी स्थिति बन जाती है। इसलिए इस नीरसता को तोड़ने के लिए और जीवन में फिर से उमंग लाने के लिए जरूरी होता है कि कोई बड़ा समारोह का आयोजन हो जिससे आसपास के सभी किसान मिलजुल कर उसका आनंद ले सकें और साल भर की थकान को मिटा सकें । इसलिए इन्हीं दिनों में गांवों में अक्सर मेले और धार्मिक समारोहो का आयोजन होते रहते है, जिनमे रामचरित मानस का पाठ एक प्रमुख आयोजन है । इस आयोजन में गांव के लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है, जिससे उनका धार्मिक काम,मनोरंजन एवम मानवता के ज्ञान की बातें एक साथ पूर्ण हो जाती है। इसीप्रकार वानरपुरा गाँव के सभी लोग मिलकर हर साल हनुमान मंदिर पर रामकथा आयोजन करते और फिर उसके बाद साम्प्रदायिक सौहार्द का मेला लगता था। किंतु कुछ समय पश्चात वहाँ के जमींदार ने इस रामकथा के बहाने लोगों से धन उगाही प्रारंभ कर दी जिसमे उसका साथ वहाँ का मुसलिम सिपहसलार देता था। इसलिए वहां के लोगों ने इस कथा के बहाने होने बाले शोषण से बचने के लिए इस कथा को बंद करबा दिया था । किंतु इस साल से इस कथा को पुनः प्रारम्भ कर दिया गया और प्रारंभ करने वाला कोई और नही बल्कि एक मुसलिम युवक था जिसका नाम आरिफ खान था।
आरिफ खान ने अपने दादा से प्रेरणा पाकर इस कथा को पुनः प्रारम्भ कर किया था। आरिफ ने रामकथा का ज्ञान अपने दादा के मित्र रामनाथ पंडित से प्राप्त किया और कुरान का ज्ञान आपमे दादा सदाउल्ला खान से। वास्तव में जब रामनाथ पंडित को लगा कि उनका कथा ज्ञान और धर्म-शास्त्र का ज्ञान उन्ही तक सीमित हो रहा है तब उन्होंने इस ज्ञान को अपने बेटे और पौतों को देना चाहा किन्तु उनकी इस ज्ञान के प्रति रुचि ना देखकर वो बहुत दुखी हुए। जब उन्होंने अपने इस दुख को अपने मित्र सदाउल्ला खां से व्यक्त किया तो सदाउल्ला खां ने उनको सुझाव दिया कि अगर वो चाहे तो रामकथा का ज्ञान वो उनके पोते आरिफ खां को दे सकते है क्योंकि आरिफ की धार्मिक ज्ञान के प्रति रुचि भी है और उसे रामकथा सुनने का चाव भी है। इसलिए सदाउल्ला खां की बात सुन रामनाथ पंडित ने एक दिन आरिफ ख़ान को बुलाया और रामकथा को लेकर कुछ प्रश्न किए, जिसके सभी उत्तर आरिफ खान से सही सही दिए साथ ही हिन्दू धर्म शस्त्रों से सम्बंधित अपनी कुछ जिज्ञासाएं भी रामनाथ पंडित के साथ साझा की । आरिफ खान की रामकथा और हिन्दू धर्म शास्त्रों के प्रति यह प्रेम और जिज्ञासा देखकर रामनाथ पंडित ने उसे रामायण ,भागवत, वेद-उपनिषद और पुराणों का ज्ञान दिया । जिसे आरिफ ने कंठस्थ किया और समय के साथ अपने जीवन मे उतारा भी। इसके साथ ही उसने अपने दादा सदाउल्ला खान से पवित्र कुरान शरीफ का ज्ञान प्राप्त किया और उसकी बारीकीयों समझा। कुछ सालों बाद पहले सदाउल्ला खान और फिर रामनाथ पंडित स्वर्गवासी हो गए।
आरिफ खान ने अपने धार्मिक ज्ञान से दोनों समुदायों में अपनी एक विशेष पहचान हासिल कर ली थी। अब हिन्दू लोग उसे पंडित कहते तो मुसलमान उसे मौलबी। जब हिंदुओ की शादी होती और कोई पंडित नही मिलता तो आरिफ खान पंडित बन वर-वधु को शुद्ध हिन्दू रिति-रिवाज के अनुसार सात फेरे दिलाता और शादी कराता। इसीप्रकार उधर मुसलमानों निकाहनामा पढ़कर मुस्लिम जोड़ों की भी शादी कराता। हिन्दू शास्त्रों के अपने ज्ञान और मधुर वाणी के कारण हिन्दू समुदाय में उसे एक अच्छी पहचान और सम्मान मिलने लगा और वह मुसलमान पंडित के रूप में प्रचारित होने लगा। उधर मुसलमानों को भी उसके इस काम से कोई दिक्कत नही होती थी। उसके हिन्दू शस्त्रों के ज्ञान और कर्मकांडो में भाग लेने से मुस्लिम समुदाय भी खुश रहता। आरिफ का घर हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक पुस्तकों से भरा पड़ा था और उसके घर के एक कमरे मे जहाँ वह इबादत करता था वहीं प्रभु श्रीराम की संगमरर की मूर्ति भी रखी हुई थी, जिनके चरणों मे सिंदूर से रंगे हुए हनुमान जी विराजमान थे। वह पाँच वार की नमाज इस तरह पढ़ता कि एकसाथ इबादत और श्रीराम जी की पूजा अर्चना हो जाती।
एक दिन आरिफ , दिन की अपनी आखिरी नमाज और श्री राम के चरणों मे शीश नवाकर सो गया, तभी उसे सपने में अपने दादा सदाउल्ला खान और अपने गुरु रामनाथ पंडित के दर्शन हुए। वो दोनों बहुत चिंतित दिख रहे थे और उससे कह रहे थे कि “अब वो समय नही रहा जब सभी लोग मिलजुल कर रहते थे। अब लोगों में धार्मिकता समाप्त होती जा रही है, कर्मकांड और दिखावा बढ़ता जा रहा है। जिसकी बजह से लोग धर्म के मर्म से दूर होकर साम्प्रदायिकता एवं नफरत जैसी बुराई के जाल में फंसते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है कि लोगों ने धर्म को कर्मकांड,जाति,धर्म समुदाय और धार्मिक स्थलों से जोड़ दिया है। जबकि धर्म कोई कर्मकांड,अटूट नियम या मंदिर-मस्जिद आदि नही बल्कि समाज के विकास के लिए मानवीय कर्तव्य और स्वयं की अति महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण रखने का एक मात्र तरीका है। साथ ही स्वयं को ब्रह्मांड की परम सत्ता से आध्यात्मिक रूप से जोड़ने का एक साधन। किन्तु अब धर्म समाज मे राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए नफरत और हिंसा बढाने का साधन हो गया है।“
आरिफ जब शुबह उठा तो उसने अपने सपने के बारे में सोचा और फिर प्रण किया कि वह इस जातिगत और साम्प्रदायिक नफरत को दूर करने का प्रयास करेगा। और इसको दूर करने के लिए वह उसी पुरानी परंपरा का सहारा लेगा जिसे अक्सर उस गाँव के बुजुर्ग लोग बताया करते थे। और वह परम्परा थी वैशाख के महीने में होने वाली रामकथा और उसके वाद लगने वाला साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए मेला। किन्तु उसने इसे केवल एक धर्म तक सीमित ना करके बहु धर्म कथा बनाने के बारे में सोचा। इसलिए उसने इस कथा में रामचरित मानस के साथ साथ पवित्र कुरान शरीफ, शरीयत और अन्य धार्मिक गुरु जैसे कबीर,रहीम, रविदास एवम नानक साहब के प्रवचनों को भी शामिल किया। जिससे सभी धर्मों के लोग कथा में शामिल हों और सभी धर्मों एवम सन्तो की शिक्षा का मूल जान सकें।
अपने इसी द्रण संकल्प से परिचालित होकर आरिफ गांव के पास बने उसी हनुमान मंदिर में गया ,जहाँ पहले राम कथा और सर्वधर्म मेले का आयोजन होता था। किन्तु पहले की तरह अब यह सामूहिक स्थान नही रहा बल्कि अब यह सिर्फ हिंदुओं का एक पूजास्थल बनकर रह गया था। यहाँ पर हिन्दू धर्माबलम्बी दिन प्रतिदिन पूजा अर्चना करते और त्योहारों पर बन्दर लंगूरों को भोज कराते थे। बंदरों लंगूरों की अधिकता के कारण मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो रहा था और जगह जगह बन्दर लंगूरों का मल-मूत्र और गंदगी बिखरी पड़ी थी। इसलिए आरिफ मंदिर की साफ सफाई के लिए अपने साथ कुछ मजदूर लेकर गया और पहले उसने उस मंदिर को ठीक कराया और फिर साफ-सफाई कर मंदिर में कपड़े का तमब्बू चढ़वाकर रामकथा वाचन के लिए एक सुंदर मंच तैयार कर लिया। इसके वाद उसने गाँव के नाई को बुलाकर आसपास के गांवों में ऐलान करा दिया कि सोमवार से पुराने हनुमान मंदिर पर फिर से वही राम कथा प्रारंभ होने बाली है, जो वर्षों पहले बन्द हो गयी थी। लोगों ने जब यह समाचार सुना तो सभी खुश हुए क्योकि गांव वालों ने हनुमान मंदिर पर होने वाली रामकथा और सर्वधर्म मेले की प्रशंसा अपने बुजु सामूहिक त्योहारों को मनाने एवम रामकथा के साथ लगने वाले मेले की प्रशंसा अपने बुजुर्गों से बहुत सुनी थी। बुजुर्ग अक्सर उस कथा को वैशाख की रामलीला एवम मेले को दशहरा और ईद का मेला कहते थे।और बताते कि इससे गाँव का माहौल शुद्ध,शांतिमय एवं सौहार्द पूर्ण रहता था। किंतु जबसे ये समारोह समाप्त हुए है तब से गाँव में घोर कलयुग छा गया है। इसलिए हुनमान मंदिर पर पुनः प्रारंभ हो रही इस रामकथा से गाँव वालों को खुशी हुई और एक आशा जगी कि अब गाँव मे जो दूषित हवा एवं नफरत बढ़ रही है वह निकल जाएगी।
इसप्रकार आरिफ खान ने अपने पैसे लगाकर मंदिर को अच्छे से सजा दिया, हनुमान जी के ऊपर सिंदूर चढ़ा दिया उनको नए कपड़े पहना दिए और केले एवं आम के पत्तो से कथा मंच एवं आसन पूरी तरह से तैयार कर लिया था। कथा मंच पर आरिफ खान ने एक रेहल/तख्ती पर रामचरित मानस और दूसरी रेहल/ तख्ती पर पवित्र कुरान की प्रति अपने आसन के पास रख ली। बगल में एक बड़ी थाली में घी का दीपक, अगरबत्ती एवम धूपबत्ती लगा ली। इसके साथ ही पूरे मंडप में अगरबत्ती एवम धूपबत्ती लगबा दी जिससे कथा प्रांगण का वातावरण अगरबत्ती एवम धूपबत्ती की खुशबू से भक्तिमय हो जाए और भक्तो को बन्दर-लँगूर और पक्षियों के मलमूत्र की दुर्गन्ध ना आये। अपने आसन के पीछे उसने मंच पर प्रभु श्रीराम की एक भव्य तश्वीर लगाई जिसमे राम-सीता -लक्ष्मण एवं हनुमान सभी थे। उसके साथ ही दुर्गा जी एवं शंकर जी की भी बड़ी बड़ी तश्वीरें लगाई और उन पर फूल माला अर्पण किए । कथा मंच के नीचे गेंहूँ के दानों पर श्रीकलश स्थापित किया। जिसके लिए पानी से भरकर मिट्टी का एक घड़ा लिया और उसके गर्दन को कलाबे से बांध दिया और घी एवम हल्दी के मिश्रण से उसपर कर स्वस्तिक बनाए तथा उसके मुख पर आम के पत्ते रखकर उनके ऊपर कलाबे से बंधा हुआ सूखा नारियल स्थापित । कथा मंच के ऊपर आरिफ ने अपने दादा सदाउल्ला खान एवं गुरु रामनाथ पंडित की एक एक छोटी तश्वीर भी लगाई और उनके ऊपर भी फूल-माला अर्पण किया।
“आरिफ की इस कथा का मुख्य उद्देश्य साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाना और लोगों में अपने अपने धर्म की समझ को बढ़ाना था”।
सोमवार का दिन आ गया ,मंदिर के आस पास झाड़ू लगाकर और फूलों से सजाकर भव्य प्रांगड़ तैयार कर लिया गया था। मंदिर की चोटी के ऊपर चढ़कर आवाज़ का भोंपू या तुरई लगा दी गयी थी जिससे कथा की आवाज़ आसपास के गांवों तक भी जाए। जिससे कथा एवम प्रवचनों से आसपास के सभी गांव की दूषित हवा शुद्ध हो जाय और ज्यादा से ज्यादा लोग इस कथा में भाग ले सकें। आरिफ के कथा मंच पर आने से पहले ही कथास्थल के प्रांगण में कौतूहलवस बच्चे इकट्ठे हो गए थे और इधर उधर भागते हुए प्रांगड़ की सजावट से आनंदित हो उछल कूद कर रहे थे। कथा मंच के पास रखी एक थाली में आटे की को भूंज कर और उसमें बूरा,तुलसी,मखाने मिलाकर पंजीरी का प्रसाद बनाकर तैयार कर लिया था और दूसरी थाली में गाय का दूध,दही,शहद,तुसली के पत्ते और घी के मिश्रण को मिलाकर पंचामृत बना लिया और साथ ही एक अन्य थाली में खरबूजा,केला,पपीता, आदि फल काट कर रख लिए थे। इसप्रकार हर दिन कथा समाप्ति और आरती होने के बाद यही प्रसाद कथा सुनने वाले भक्तों में बाँटा जाना था। जिन्है देख-देख कर बच्चों के मुँह में पानी आ रहा था।
आरिफ ने देखा प्रांगण में लोग इकट्ठा होने लगे है और अपने साथ जो दान लेकर आये थे उसे या तो पूजा की थाली में चढ़ा रहे है या फिर श्रीकलश के पास रख रहे है। इसतरह धीरे धीरे लोगों की भीड़ बढ़ रही थी। अतः अब आरिफ ने पहले दिन की रामकथा प्रारंभ करने के लिए सर्वप्रथम उसने शंख उठाकर शंख नाद किया और पूजा की थाली में घी का दीपक जला कर प्रभु श्रीराम की तश्वीर और अन्य देवताओं की तश्वीर के सामन थाली को दोनों हाथों से पकड़ कर आरती करना शुरू कर दिया। फिर एक अन्य व्यक्ति ने मंजीरा पकड़ा एक ने घण्टी लेकर बजाना शुरू कर दिया। और फिर प्रांगण में खड़े सभी भक्त जिनमे महिला-पुरूष-बच्चे सभी सामिल थे, ने हाथ जोड़कर और कुछ ने दोनों हाथ ऊपर करके पूरे भक्तिभाव से आरती करना शुरू कर दिया। इस तरह आरती ,शंख,घण्टी और मंजीरे की आवाज़ से हनुमान मंदिर का परिसर एवम तुरई की आवाज़ से आसपास के गाँव का माहौल भक्तिभाव से रच गया। आरती समाप्त होने के बाद आरिफ ने पूजा की थाली से पानी से भरे पीतल का लौटा लिया और उसमें पड़े आम के पत्तो से सभी भक्त जनों और कथा मंच पर छिड़क दिया। और जोर जोर से जय श्रीराम, जय सीता माई, जय हनुमान, जय भोले नाथ, आदि के नारे जोर जोर से लगाए,जिसमें बड़ों की आवाज़ से ज्यादा बच्चों की आवाज़ ज्यादा बुलंद थी। और फिर आसन पर बैठकर आरिफ ने सभी भक्तों को बैठने का इशारा किया और उनसे सभी श्रोताओं से कहा “ यह राम कथा प्रारंभ करने का मेरा उद्देश्य खुद का प्रचार-प्रसार करना नही है बल्कि गाँव मे फैल रही दूषित हवा को शुध्द करना एवम आपसी भाईचारे को बढ़ाना है। क्योंकि हमसे सभी ने अपने बुजुर्गों से अक्सर सुना है कि जब जहाँ रामकथा होती थी और सर्वधर्म मेला लगता था तब गाँव मे समृद्धि और शांति बहुत थी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि गाँव में वही समृद्धि और शांति पुनः आ जाए, इसी उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए मैंने इस कथा का आयोजन प्रारंभ किया है। वास्तव में राम शब्द संस्कृत भाषा की दो धातुओं रम और घम से मिलकर बना है।जिसमें रम का अर्थ है रमना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड, आर्थत सकल ब्रह्मांड में रमा हुआ तत्व ,चिराचर में विराजमान ब्रह्म ही राम है। इसीप्रकार अगर फ़ारसी भाषा मे राम शब्द का अर्थ आज्ञाकारी एवं इंद्रियों को वश में रखने वाला होता है, अर्थात स्वयं ब्रह्म। इसी कारण मैंने रामकथा को ही एवम इसके साथ ही कुरान शरीफ,सरियत,कबीर,नानक, रविदास के विचारों से भी परिचित कराना है।
आरिफ की बात सुन सभी श्रोता खुश हुए । सभी श्रोताओं को अपना सम्बोधन देकर आरिफ खान जो अब कथावाचक बना हुआ था ने, रामचरितमानस ग्रंथ को सिर से लगाकर पाठन प्रारंभ कर दिया।
इसप्रकार प्रतिदिन रामकथा का वाचन होता और सभी भक्त आरिफ की मधुर वाणी से रामकथा और अन्य धर्मों के प्रवचन सुन आंनदित एवं ज्ञान प्राप्त कर रहे थे। कथा के अंत मे पंजीरी और पंचामृत का प्रसाद सभी भक्तों में बांटा जाता । कथा के अंत में हर दिन मे आरती होती, और आरती की आवाज़ सुन सभी बच्चे मंदिर परिसर में आ जाते और प्रसाद लेने में जुट जाते। अपना प्रसाद तुरन्त खाकर पुनः हाथ फैलाकर खड़े हो जाते । इस नटखट बेईमानी से प्रसाद देने बाला रामदास परेशान जो जाता और बच्चों पर खीझ पड़ता किन्तु आरिफ इस माहौल और नटखट शरारत का हृदय से आनंद लेता, इसीकारण वह प्रतिदिन प्रसाद की तय मात्रा से ज्यादा बनबाता।
रामचरितमानस के पाठ जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे श्रोताओं की संख्या भी बढ़ रही थी। और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि आरिफ की इस रामकथा में केबल हिन्दू लोग ही नही बल्कि उस गाँव और उसके आसपास रहने वाले सभी धर्मों के लोग हिस्सा ले रहे थे, क्योकि आरिफ कथा के बीच-बीच में कुरान,शरीयत,कबीर,नानक, रविदास आदि सन्तो की वाणी भी सुनाता रहता, जिससे सभी धर्मों के लोगों को उस कथा से जुड़ने का तत्व मिल ही जाता था। इसप्रकार आरिफ की रामकथा का उद्देश्य पूरा हो रहा था।
इसतरह से आरिफ खान ने एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया था जिसमे साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ साथ मानविय संवेदनाओं की शिक्षा भी लोग प्राप्त कर रहे थे। लोगों पर कथा का इतना प्रभाव था कि वो अगले दिन की कथा सुनने के लिए लालायित रहते और अब केबल आसपास के गांव से ही नही बल्कि दूर दराज के गांवों से भी लोग आरिफ खान की वाणी से श्री राम कथा एवम धार्मिक प्रवचन सुनने के लिए आने लगे थे।
किन्तु गाँव मे एक समुदाय आरिफ खान की इस कथा से प्रशन्न नही था। जिसमे से एक पंडित रामनाथ का भी परिवार था क्योंकि रामकथा और पंडिताई से आरिफ ने जो शौहरत हासिल की उस पर अब वो अपना अधिकार मानते थे। साथ ही कुछ लोगों को लग रहा था कि पंडिताई और मौलवी गिरी से आरिफ को मिल रही प्रशिद्दी से उनके रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ऐसे लोग कैसे भी आरिफ की इस कथा को बंद करना चाहते थे। किन्तु दोनों समुदाय जब इस वारे में गांव के अन्य लोगों से बातें करते तो एक ही उत्तर मिलता कि आरिफ भला काम कर रहा है। उसने समाप्त हो चुकी परम्परा को पुनः शुरू कर दिया है जिससे गाँव की दूषित हवा समाप्त होगी और गाँव का भला होगा।
इसप्रकार रामकथा को चलते चलते पंद्रह दिन से ज्यादा हो गए थे और अब लंका कांड का आखिरो अध्याय चल रहा था। इसलिए अब कथा एक या दो दिन की बची थी। इसप्रकार कथा के आखिरी दिन आरिफ खान खा-पीकर कथा मंच के आसन पर विराजमान हो गया। उसने आसन से प्रांगड़ की तरफ देखा तो पूरा प्रांगण महिला-पुरुषों से खचा खच भरा हुआ था। प्रांगण के चारो तरफ तूफान पंखे लगे हुए थे किंतु लोगों की भीड़ इतनी ज्यादा थी कि पंखे रिगिस्तान में एक बूंद पानी के समान हो चुके थे। किन्तु रामकथा के प्रति लोगो की श्रद्धा और भक्ति ने वैशाख की लू और दहकते सूरज की तपिश और गर्मी को अस्तित्वहीन कर दिया था।
आरिफ ने आसन ग्रहण करने से पहले मंच पर रखी पंडित रामनाथ की तश्वीर और अपने दादा सदाउल्ला खां की तश्वीर का शीश झुकार कर अभिवादन किया और फिर रामचरितमानस को सिर से लगाया और फिर पवित्र कुरान को भी चूमा और पुनः उसी स्थान पर रख दिया। नीचे हाथ मे आरती का थाल लिए बुजुर्ग सलीम मियां और मंजीरा लिए खड़े रामदास ने आरिफ के शंखनाद की ध्वनि सुन सुन मंगलाचरण की आरती प्रारम्भ कर दी एयर फिर उनके साथ सभी भक्तों ने भी भक्ति में झूम झूम कर और ताली बजाते हुए आरती में उनका साथ देना प्रारंभ कर दिया। आरिफ खान बीच बीच मे शंखनाद करता और घण्टी बजाता। बुजुर्ग सलीम आरती की थाली को सभी लोगों के पास घुमाता हुआ लेकर जाता और साथ ही आरती भी गाता रहता। पूरा माहौल भक्तमय हो चुका था, सभी भक्तगण हाथ उठाकर आरती कर रहे थे और आरती के अंत मे जय श्री राम,जय जानकी माई,जय हनुमान के नारों से वातावरण गूंज उठा था ।
आरती पूरी हुई और फिर आरिफ ने सभी लोगों के ऊपर पीतल के लौटे में भरा हुआ जल आम के पत्तो से छिड़का। उस जल की जैसे जैसे बूंदे लोगों के ऊपर पड़ रही थी लोगों के मुँह पर श्रद्धा और खुशी की लहर सी दौड़ रही थी जैसे वह कोई सामान्य जल नही बल्कि समुद्र मंथन से निकल अमृत हो। आरिफ ने जल झिड़कर कर सभी लोगों को बैठने के लिए कहा और कथा के प्रति बढ़ रही रुचि से सन्तुष्टि होकर लंका कांड का आखिरी अध्याय शुरू किया ।
सभी लोग रावण वध की कथा को ऐसे सुन रहे थे जैसे उनकी आंखों के सामने ही रावण को मारा जा रहा हो, और फिर रावण की पत्नि मंदोदरी का विलाप सुन महिलाओं की आखों से आसुंओं की धारा बहने लगी थी। रावण की मृत्यु पर लोगों की जीत की प्रतिक्रिया और फिर उसी रावण की पत्नि मन्दोदरी और विभीषण के बिलाप से विचलित भक्तों के आंखों में आसूं देख आरिफ भी आश्चर्यचकित और भावुक था। भक्तों की दशा को समझते हुए आरिफ ने कहा कि देखो यही है हमारी दिन्दुस्तानी संकृति जिसमे शत्रु से नफरत नही बल्कि बुराई से नफरत की जाती है। देखिए एक तरफ प्रभु श्री राम अपने ही हाथों से दुष्ट रावण का वध करते है तो वहीं दूसरी तरफ उसी रावण को विस्व का सबसे महान पंडित कहकर उसका सम्मान करते है। साथ ही उससे ज्ञान पाने के लिए उसके चरणों की तरफ जाकर खड़े हो जाते है। देखो कितनी अदभुद संकृति है हमारे देश भारत की जिसमे नफ़रत नही बल्कि सौहार्द ज्यादा है ।
प्रभु श्री राम अयोध्या नरेश एवम ईस्वर का अवतार होकर भी रावण को अकेला नही मारते, जबकि उनके लिए तो यह पलक झपकने जैसा कार्य था। फिर भी वो दुष्ट रावण को मारने के लिए जंगली लोगों एवम जंगली जानवरों की सेना की सहायता लेते है। तुम ही बताओं जिन श्री राम का राज्य पूरे भारत वर्ष में फैला हुआ था क्या वो किसी राजा की सहायता नही ले सकते थे या फिर भाई भरत से कहकर आयोध्या से सेना नही बुला सकते थे। किन्तु सभी संसाधनों से परिपूर्ण होने के बाद भी उन्होंने ऐसा नही किया। और अपनी सेना के रूप में जंगली लोगों एवं जंगली जानवरों को चुना। जो यह दर्शाता है कि जिन लोगों को और प्राणियों हम तुच्छ ,निकृष्ट और असभ्य मानकर नफरत करते है, अगर उनको भी प्रेम और सम्मान के साथ शिक्षा दी जाय तो वो भी रावण जैसी दुर्जेय समस्या को हल कर सकते है। इसलिए हम सभी को उंच-नीच,जाति-धर्म को दूर रखकर मानवीय एकता पर बल देना चाहिए और सभी से प्रेम करना चाहिए ।
– आरिफ खान की बात सुन प्रांगड़ से बाहर खड़े लम्बे-चौड़े एक नव युवक ने आरिफ से प्रश्न किया कि आपके कहने का अर्थ है कि हमको अब सभी नीची जातियों के साथ खान-पान करना चाहिए…..?
– आरिफ ने उस युवक के प्रश्न का जबाब देते हुए कहा- भाई कोई जाति या उंच-नीच नही होता। यही बताने और समझाने के लिए ही तो प्रभु श्रीराम ने जंगली जानवरों की सेना बनाई थी, अन्यथा वो इंसानों की अर्थात क्षत्रियों की सेना ही बनाते या फिर भाई भरत से कहकर अयोध्या से सेना बुलाते और लंका पर आक्रमण करते..।
आरिफ के जबाब का सभी श्रोताओं ने समर्थन किया और आरिफ को साधुवाद दिया…जिससे वह युवक और उसके साथ खड़े अन्य युवक छिड़ गए…. अतः अब उसी युवक के पास खड़े उसके दूसरे साथी युवक ने आरिफ खान से कहा आपको क्या पता कि रामायण में सच क्या है..?
आप कोई हिन्दू थोड़े हो.. इधर उधर से पढ़कर तुम तुलसीदास बनने की कोशिस कर रहे हो..और नीचे बैठे इन निरा मूर्खों को बहखा रहे हो…।
उस युवक की बात सुन आरिफ को लगा कि ये कुछ उद्दंड युवक है और इस कथा का माहौल खराब करना चाहते हैं। इसलिए उसने इन लोगों से आराम से और प्रेम से बात कर मामले को शांत कराने की कोशिश की।
और उसने जबाब दिया, नही भाई मैं तुलसीदास महाराज बनने की ना तो कोशिश कर करा और ना मैं हो सकता हूँ। इसलिए आपकी बात सत्य है कि मुझे धर्म शास्त्रों का आधा अधूरा ज्ञान है। किंतु इस ज्ञान को में लोगों में बांट रहा हूँ जिससे सभी लोग खुश है। और उनको कोई आपत्ति भी नही है । फिर बताओ मैं क्या बुरा कर रहा हूँ…?
– तभी एक युवक निकला और बोला तू इससे ज्यादा क्या बुरा सकता है…? मुसलमान होकर रामकथा का पाठन कर रहा है । सच कहूँ तो ना मुसलमान है और ना हिन्दू । तू ढोंगी है और इसी ढोंग से भोले भाले गाँव के लोगों को भ्रमित कर रहा है..!
– आरिफ प्रांगड़ में कुछ बैठी और कुछ खड़े लोगों से प्रश्न किया कि आप सब लोग पिछले 15 दिन से यहाँ रामकथा सुनने आ रहे हो अब तुम सब ही बताओ क्या मैंने तुम सभी को भ्रमित किया है…?
– लोगों ने दबी आवाज़ में और गर्दन हिला कर जबाब दिया कि नही क्योकि कोई भी उस झंझट में नही पड़ना चाहता था।
– जनता की दबी आवाज़ का फायदा उठाकर एक युवक बोला चलो भाई सब के सब खड़े हो जाओ और अपने अपने घर जाओ आज से ये डोंगविद्या खत्म हुई.. और।हमने इसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करा दी है कुछ ही देर में पुलिस इसे उठा ले जाएगी..
-युवक की बात सुन आरिफ घबरा गया और बोला मैंने क्या जुर्म किया है जो तुमने मेरे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट की..?
-तभी एक अन्य युवक ने आरिफ की गर्दन जोर से पकड़ी और बोला तुझे तेरा जुर्म बताने की भी बताने की जरूरत है..?
तू जंगली है जंगली यही तेरा जुर्म है…
कोई कुछ सोच पाता उससे पहले ही एक अन्य युवक ने
तुरन्त ही लोगों से कहा अरे ये तो जंगलीयों से भी बदतर होते है माँस खाते है अपनी बहन-बेटी से शादी करते है…
– उन युवक और आरिफ खान की बढ़ती बहस को सुन और देख कर सलीम मिया जो कथा मंच के पास ही बैठा था उन दोनों युवकों के पास आया और बोला बच्चों शांत हो जाओ क्यो रस में विष मिला रहे हो..?
– सलीम मिया के स्पर्श से युवक इतना क्रोधित हो गया कि उसने बुजुर्ग सलीम मिया में जोर से धक्का दे दिया और लोगों के ऊपर उसे गिरा दिया..
– सलीम मिया का यह हश्र देख आरिफ ने भागकर सलीम मिया को पकड़ा । और फिर झगड़ा बढ़ता हुआ देख सभी लोग अपनी अपनी जगह से खड़े हो गए और सलीम मिया को बचाने लगे और उन युवकों को शान्त करने लगे। कुछ लोग गुस्सा होकर उन युवकों को वहां से चले जाने के लिए बोलने लगे..
-युवक अपना तिरस्कार देख और भी गुस्सा हो गए और उनमें से एक युवक ने अपने थैले से मांस निकालकर कहा तुम इस ढोंगी का पक्ष ले रहे हो देखो ये आज शुबह ही गाय का माँस खा कर आया है। और यहाँ पर पंडित बन रहा है.!
तुम इसे भगाने की जगह हमको भगा रहे हो…!
युवक बात सुन सभी लोग चुप हो गए और युवक के हाथ में रखे मांस और आरिफ की तरफ बारी बारी से देखने लगे..
– आरिफ जोर से चिल्लाया और बोला ये क्या बकबास कर रहे हो…तुमको पता है जिस दिन से मैंने कथा प्रारंभ की है उस दिन से मेरे घर में माँस तक नही बना है और गाय खाना तो मेरे लिए क्या यहां पर रह रहे सभी मुसलमानों के लिए हराम है.. ये तो सभी को पता है..
– तभी एक अन्य युवक गांव के पास मीट बेचने बाल कसाई को पकड़कर लाता है और कहता है बता नालायक क्या ये गाय का मीट नही…? और उसमें लगातार चार-पांच थप्पड़ रसीद कर देता है..
तभी दूसरा युवक उस कसाई को नीचे गिराता है और लात मारते हुए कहता है बोल ये कि गाय का मांस है बरना आज मार मार कर तेरी खाल उधेड़ देंगे और फिर वही खड़ा तीसरा युवक जोर से चिल्लाता है जय श्रीराम-जय श्रीराम जिससे लोगों में उत्तेजना भर जाती है जिसे देख आरिफ़ और सलीम की हालत खराब होने लगती है..
– कसाई मरने के डर से रोता हुआ कहता है हाँ ये गाय का माँस है..मुझे छोड़ दो मुझे छोड़ दो..
– कसाई का जबाब सुन कुछ मुस्लिम युवक आरिफ को पकड़कर उसमे तमाचे मारने लगते है और बोलते है हरामी तूने अपने पाखण्ड के चक्कर मे वर्षों पुराने भाईचारे के रिस्ते समाप्त कर दिया…तभी वह मुश्लिम युवक हिन्दू युवक से कहता है भाई ले जाओ इस हरामी को और मार डालो..ये बहुत बड़ा पंडित और मौलवी बन रहा है…!
– यह सुन हिन्दू युवक, रोते और पैरो में गिड़गिड़ाते हुए आरिफ और सलीम को, उनके कुर्ते की कॉलर पकड़ घसीटने लगते है…यह देख कथा सुनने बाली कुछ महिलाएं सामने आती है और उन युवकों के सामने अपने हाथ जोड़कर बोलती है..बेटा इनको छोड़ दो, जरूर कोई गलतफहमी हुई है…हम सब तो इसे वर्षों से जानते है..इसके बाप -दादा को भी जानते है ..ऐसा नही होगा..
– तभी हिंदू युवक कहता है, आपको क्या पता चाची ये कथा के चक्कर मे हिंदुओं को मुसलमान बना रहा है । इसके मंच पर जाकर देखो इस सूहर ने रामायण के बगल में कुरान रखी है, देखो जाकर.
– एक महिला उनको रोकते हुए बोलती है ,वो सब तो हमको पहले से ही पता है कि पंडित जी कुरान की बातें भी बताते थे। किन्तु उसमे हर्ज क्या है बेटा…ज्ञान की बातें तो कही से भी मिल जाये..
– उधर आरिफ उन युवको के हाथ जोड़ता है और रोता हुआ कहता है भैया मेरी कोई गलती नही जरूर कोई गलत फहमी हुई है..
इतनी ही देर में पुलिस का इंस्पेक्टर भीड़ को चीरता हुआ आरिफ के पास आ जाता है और उन युवकों से कहता है कि क्या ये वही मुसलमान है जिसकी रिपोर्ट कराई है..?
-तभी एक युवक जबाब देता है हाँ दरोगा जी यह वही हरामखोर व्यक्ति है…
– यह सुन इंस्पेक्टर आरिफ की गर्दन पर लकड़ी की बनी अपनी रोल।रखता है और बोलता अब तू रो रहा है। हिंदुओ को मुसलमान बनाते समय तो बहुत खुश हो रहा होगा…! इंस्पेक्टर युवकों से कहता है मारो साले को…
-इंस्पेक्टर की बात सुन आरिफ और सलीम जोर से चिल्लाते है साहब बचा लो हमको,हमारी कोई गलती नही बचा लो..
– उनकी आवाज़ सुन इंस्पेक्टर बोलता है हाँ बचाऊंगा, जेल में इनमें से तुम दोनों से कोई कुछ नही कहेगा किन्तु टैब तक अपने कर्मो की सजा तो भुगत लो..
– तभी एक युवक उसमें जोर से लात मारता है और चिल्लाते हुए कहता है हम तुझ पर दो साल से नजर रखे हुए थे। मगर तू सुधरा नही..इसलिए अब तू झुहन्नम मैं जाएगा..
– आरिफ और सलीम लात-घूंसे और थप्पड़ खाकर दर्द से कराहते रहते है और उनके मुँह से खून भी बहने लगा है …आरिफ काँपता हुआ हाथ जोड़े उन महिलाओं से कहता है बहिन आप सब बताओं मैने कोई गलत काम किया या कोई गलत सलाह दी…
– उसकी इस हालत को देख कुछ महिलाओं की आखों में भी आँसू आ जाते है और फिर वो उन युवकों के सामने पुनः हाथ जोड़ती हुई कहती है..भगवान के लिए छोड़ दो..अब नही करबाएँगे इससे धर्म की बातें..जो हुआ सो जाने दो भाई..और फिर वो महिलाएं पुलिस बालों से कहती है तुम तो पुलिस हो अपने सामने इस अन्याय कैसे देख रहे हो…! इससे अच्छा तो यह है कि तुम इन दोनों को यहां से ले जाकर जेल में डाल दो,जिससे इनकी जान तो बच जाएगी…बरना ये लोग इनको जिंदा नही छोड़ेंगे…!
– दूसरा युवक आरिफ को घसीटते हुए कहता है कि ले चलो इस हरामी को मंदिर के पीछे आज वहीं पर इसकी वली चढ़ेगी..
– आरिफ दर्द और खून से लथपथ हो चुका है अब वह अपनी जान को छोड़ सलीम की जान बचाने के लिए युवकों से बार बार दया की भीख माँगता है…
– किन्तु तभी युवक जोर जोर से चिल्लाने लगते है जय श्री राम जय श्री राम.. और फिर देखते देखते भगदड़ मचने लगती है..
हिन्दू युवकों का एक दल रामकथा मंच पर चढ़ जाता है और पहले रामनाथ पंडित और फिर सदाउल्ला खान की तश्वीर को फाड़ कर फेंक देते है और फिर कुरान शरीफ की प्रति को उठाते हैं और उसे भी फाड़ कर फेंक देते है …यह देख मुस्लिम युवकों का एक दल अल्लाह हो अकबर करता हुआ और हाथों में डंडे, हॉकी और तमंचे लिए मंच पर चढ़कर आसन पर रखी रामायण की प्रति को उठाकर फाड़ देते है और फिर देखते ही देखते दोनों पक्षो में हथियारों के साथ दंगा प्रारम्भ हो जाता है..और भगदड मच जाती है..
– दंगा होता देख और दंगाई युवकों को लोगों को मारता हुआ देख पुलिस एक तरफ खड़ी हो जाती है और मूक दर्शक बन तमाशा देखती रहती है..
-तभी मुस्लिम युवकों का दल मंच से उतरता है और पहले तो सारा मंच तोड़ देता है और फिर महिला पुरुष जो भी हाथ लगता है उनको जबरदस्त और बेरहमी से पीटता है। यह देख पुलिस के कुछ सिपाही उत्तेजित हो जाते है और पास खड़े इंस्पेक्टर से कहते है- साहब रोको इनको बरना बहुत अनर्थ हो जाएगा ..
– इंस्पेक्टर सिपाही को शांत करते हुए जबाब देता है कोई नही अभी होने दो फिर कार्यवाही करते है। और फिर व्यंग करते हुए कहता है पिटने दो सालों को ,इनको भी मुसलमान के श्रीमुख से रामकथा सुनने का बड़ा चाव था…
किन्तु अब दंगा दंगाइयों के हाथों से निकलकर आम जनता और गांब वालों के हाथ मे आ गया जिससे दंगा और जोर से बढ़ने लगा और मार काट शुरू हो जाती है..
-तभी दूसरे सिपाही ने इंस्पेक्टर से कहा सर और फोर्स बुला लो दंगा बढ़ता जा रहा है, और कार्यवाही अभी शुरू कर दो बरना सबकुछ हाथ से निकल जाएगा..
– इंस्पेक्टर ने सिपाही को डांटते हुए कहा..चुप एक दम चुप..तुम अफसर हो या हम अफसर है..तुमको जबाब देना है या हमको..बताओ… जब सब कुछ हमको ही करना है तो तुम बीच में इनता ज्यादा क्यो फुदक रहे हो..? क्यो इतना बिल बिला रहे हो..? हमारी भी आंख है हम देख रहे सब…और ये तुमको ही नही ऊपर के सब अधिकारियों को पता है,..समझे.. इसलिए जब तक मैं ना कहूँ तब तक मुँह और हाथ न खोलो समझे..
– इंस्पेक्टर की डांट फटकार सुन सिपाही शांत होकर खड़ा हो गया और अन्य तीन सिपाही भी चुप चाप होकर दंगे का तमाशा देखने लगे..
– युवक आरिफ और सलीम को खींचते हुए मंदिर के पीछे लेकर जा रहे हैं, और उसमें लगातार लात-घूंसे मारते हुए जा रहे हैं और गाली दे रहे हैं..उनके पीछे कुछ महिलाएं अपनी साड़ी सम्भालती हुई और दया की भीख मांगती हुई युवकों से उन दोनों को छोड़ने की याचना करती हुई उनके पीछे पीछे चल रही है..
– तभी इंस्पेक्टर वहाँ पहुंचता है और आस पास खड़े लोगो को सिपाही रोकते हैं और फिर इंस्पेक्टर एक युवक को रोकता है जिसने आरिफ की कॉलर पकड़ी हुई थी और उसे रोकते हुए उसके कान में कहता है..
– इसे छोड़ दो.. ये काम की चीज है मारना है जितना मार लो किन्तु जिंदा छोड़ दो..
– युवक पूछता है और इस दूसरे का क्या करें..?
– इंस्पेक्टर आखों की पलको को ऊपर करते हुए और हाथ का इसारा करते हुए कहता है ये तुम्हारी मर्जी है जो करना है करो..
– यह सुन सभी युवक एक साथ जिनमें कुछ रामनाथ पंडित के परिवार बाले भी थे आरिफ की लात घूसों से मार लगाना शुरू कर देते है और सलीम को मंदिर के पीछे खींच कर ले जाते है..लात-घूंसे खाता हुआ आरिफ अब तक बेसुध हो चुका था और उसे अब दर्द भी नही हो रहा था…जब लात-घूंसे पड़ते तभी कराहता बरना बेसुध ही रहता… मुँह से खून और लार बहे जा रहे थे और घूंसों और लात की मार से आंख के आसपास नील पड़ गयी थी और मुँह सूज गया था, जिससे उसे कुछ दिख नही रहा था..
-उधर दूरी तरफ मुस्लिम युवकों ने भी यही हाल रामदास को पकड़ कर उसका कर दिया और उसे मारने लगे …
इसतरह एक तरफ जहाँ सलीम, आरिफ को मारा जा रहा था वही दूसरी तरफ रामदास को मारा जा रहा था और तीसरी तरफ आम जनता हिन्दू-मुस्लिम दंगो में आपस मे एक दूसरे को मार रही थी..और पुलिस इस तमासे का मजा ले रही थी।
– भीड़ को बेकाबू होता देख इंस्पेक्टर ने अधमरे आरिफ को पुलिस की जीप में हथकड़ी से बांध दिया… और तभी एक पेट्रोल बम भीड़ को चीरता हुआ आसमान से आया और इंस्पेक्टिर के सिर पर आ लगा, जिससे इंस्पेक्टर लहू लुहान होकर जमीन पर बेसुध होकर गिर गया.. इंस्पेक्टर का यह हाल देख दो सिपाही उसे उठाने लगे तो अन्य दो सिपाहियों ने डर से अपनी राइफल बन्दूक से आसमान में गोली चलानी शुरू कर दी.
गोलियों के आवाज़ सुन भीड़ और बेकाबू हो गयी और दोनों तरफ साम्प्रदायिक रूप से मोर्चाबन्दी होकर पत्थर बाजी होने लगी… एक पत्थर आकर किसी महिला के सिर पर पड़ा वह लहूलुहान होकर खेत मे जा पड़ी। इसीप्रकार लोग पत्थरों से घायल हों रहे थे। कुछ पत्थर अब पुलिस की जीप पर भी गिरने लगे..
-सिपाहियों ने इंस्पेक्टर को जल्दी से जीप में डाला और जीप को स्टार्ट कर हॉस्पिटल की तरफ जाने लगे.. हॉस्पिटल पहुंचकर सबसे पहले इंस्पेक्टर को अस्पताल में भर्ती कराया और फिर आरिफ को थाने ले जाकर जेल में पटक दिया..और फिर एसपी आफिस फोन कर घटना क्रम की जानकारी दी और बताया कि जितनी जल्दी हो सके वहाँ पर अतिररिक्त पुलिस बल भेज दो बरना वहां के सभी गाँव दंगे की चपेट में आजेंगे और तबाह हो जाएंगे साथ ही बताया कि यहां के थानेदार के सिर पर एक पेट्रोल बम्ब पड़ा है जिसकी बजह से उनकी हालत खराब है और उनको बगल के सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया है..
एसपी आफिस को जब यह खबर मिली तो एसपी साहब ने तुरंत ही अतिरिक्त पुलिस बल और सीआरपीएफ का इन्तजाम कर मौके पर जाने के लिए आदेश दिया और दूसरे थाने के थानेदार को घायल थानेदार की जगह नियुक्त कर थाने में भेज दिया..
नया थानेदार थाने में पहुंचा गया और उसने मौके पर उपस्थित उक्त घटनाक्रम और इंस्पेक्टर आदि की सिपाहियों से जानकारी ली। थानेदार ने देखा कि आरिफ खान जैल में वेसुध पड़ा हुआ है..उसका पूरा मुँह चोट से सूज चुका था मुँह से खून और लार निकल रहे थे। हाथ-पैर जमीन पर ऐसे पड़े हैं जैसे उनमे जान ही ना बची हो। उसके कपड़े खून-लार,अपने और मारने वालो के पसीने से चप्पल-जूतों की मिट्टी से बदरंग हो गए थे, अब उन कपड़ों की सफेदी अपना अस्तिस्त्व खो चुकी थी। शरीर का इतना बुरा हाल होते हुए भी आरिफ के मुँह से कराहने या रोने की आवाज़ तक सुनाई नही पड़ रही थी।
यह देख थानेदार चिंतित हुआ और उसने तुरंत ही जेल का दरबाजा खोल आरिफ खान की हालत जांची। पहले उसे जनाब जनाब कहकर अपने हाथ से उसे हिलाते ह्यू पुकारा किन्तु जब कोई जबाब नही मिला तो थानेदार आरिफ के सिर के पास बैठा और उसके सिर को उठाया जहाँ से बहुत सारा खून बाहर निकल रहा था। फिर उसकी आंख की पुतली उठा कर देखी वो खुल नही रही थी और ना ही उनमें कोई हलचल थी, उसने घबराते हुए आरिफ की नब्ज पकड़ कर जांची और जोर से चिल्लाया जल्दी से जीप निकालो और सरकारी अस्पताल चलो..
– सिपाही ने भी आदेश का बिजली की गति से पालन किया जीप निकाली ही थी कि थानेदार आरिफ को कंधे पर उठाकर भागता हुआ आया। उसने आरिफ को जल्दी जीप में डाला और सरकारी अस्पताल की तरफ भागा। रास्ते में सिपाही ने बताया कि सर यही वो मुसलमान है जिसकी बजह से ये दंगा शुरू हुआ और यही हिंदुओं को मुलसमान बनाने के लिए प्रेरित कर रहा था…। थानेदार चुपचाप उस सिपाही की बातें सुनता रहा और जैसे ही अस्पताल आया वैसे ही उसने पुनः आरिफ को कंधे पर उठाया और इमेरजेंसीय इमेरजेंसी चिल्लाता हुआ अस्पताल के अंदर भागा..
उसे देखकर अस्पताल का स्टाफ आया और उन्होंने जल्दी से उसे स्ट्रेचर पर लिटा दिया और उसे इलाज के लिए लेकर जाने लगे..
तभी जीप से उतर कर सिपाही भागता हुआ अंदर आया और जोर से बोला इसी मुसलमान की बजह से दंगा भड़का है साहब..
-इंस्पेक्टर चुप रहा और अस्पताल में वहीं खड़े होकर फ़ोन से एसपी साहब को सारी जानकारी दी और फिर वहीं पर खड़ा हो गया और डॉक्टर या नर्स के जबाब का इन्तजार करता रहा उसके साथ उसका सिपाही भी पास पड़ी बेंच पर बैठ गया..
– जैसे ही अस्पताल बालों ने सिपाही की बात सुनी कि ” इसी मुसलमान की बजह से दंगा हुआ है” सभी अस्पताल बालो में उसके प्रति एक नफरत भर गई और उन्होंने उसको कुछ दूर ले जाकर उसके स्ट्रेचर को आपरेशन रूम के बाहर छोड़ दिया… जब वह स्ट्रेचर अंदर नही गयी तो थानेदार आया और उसने चिल्लाते हुए कहा कि अगर इस आदमी को कुछ हो जाता है तो वह पूरे अस्पताल को जेल में डाल देगा, तब जाकर अस्पताल बालों ने उसे आपरेशन रूम में लेकर गए और उसका इलाज प्रारम्भ किया..
उधर वानरपुरा गाँव मे पुलिस और सीआरपीएफ पहुँच गयी थी, उठाने दंगाई भीड़ पर काबू कर लिया था किंतु कथा प्रांगण का हाल बेहाल हो चुका था। कई लोग जिनमे महिलाएं बच्चे और बुजुर्ग ज्यादा थे वहीं बुरी हालत में पड़े हुए थे और रो रहे थे एवम तड़फ रहे थे। कुछ लोगों की वहीं पर मृत्यु हो गयी थी जिसकी वजह से उनके परिवार वालों का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था , कथा मंच में आग लगा दी थी जिससे वहां पर सब कुछ काला और रख बन चुका था।पूजा की थाली कहीं पड़ी थी, कहीं दीपक था तो कहीं मंजीरों की झनकारे पड़ी हुई थी। चप्पल जूते और टूटे हुए पंखे पूरे प्रांगण में बिखरे पड़े पड़े। मंदिर के पीछे सलीम की लाश पड़ी हुई थी तो दूसरी जगह रामदास के शरीर का चीड़फाड़ कर दिया था। चारों तरफ से रोने और चिल्लाने और पुलिस के सायरन की आवाज़ लगातार आ रही थी। आग से जली हुई धूपबत्ती, अगरबत्ती,घी,प्रसाद और लोगों के खून से हवा की महक दूषित हवा में बदल रही थ्थी। जिस कारण सभी पुलिस बलों ने अपने अपने रुमाल निकाल अपनी नाक पर रखकर कथा प्रांगण में इधर उधर घूम रहे थे और घायल लोगों को जीपमे डालकर सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए भेज रहे थे।
तभी कुछ ही देर बाद गाँव के प्रधान और एसपी एवम डीएम के साथ वहाँ के चुने हुए प्रतिनिधि विधायक एवम सांसद आ पहुचे और पहुँचते ही उन्होंने वहाँ उपस्थित गांव बालों से पूछा कहाँ है वो कमीना मुसलमान जिसने दंगे कराए हैं…?
उधर अस्पताल में इलाज करते हुए कुछ ही समय गुजरा था कि आपरेशन रूम से नर्स एक स्ट्रेचर को खींचते हुए बाहर निकली और थानेदार के पास आकर रुक गयी और बोली – सर देख लीजिए…
– थानेदार ने जब यह देखा तो उसके हाथ पैर सुन्न हो गए और उसने खुद को संभालते हुए उससे पूछा..ये कौन है..?
– उसने जबाब दिया सर आपका ही बन्दा है..
– थानेदार की आवाज़ भर्रा गयी और बोला मेरा बन्दा..
-तभी नर्स बोला हां आपका बन्दा..
-थानेदार की हालत खराब देख पास खड़े सिपाही ने स्ट्रेचर पर पड़ी लाश के मुँह से कपड़ा उठाया और देखा कि पुराना इंस्पेक्टर मर चुका है…यह देख सिपाही भर्राए हुए स्वर में थानेदार से बोला सर देखिए साहब नही रहे ..किन्तु थानेदार ने इंस्पेक्टर की डेड बॉडी को देख पहले उसे सैल्यूट कर अपना फर्ज पूरा किया और फिर नर्स से पूछा उसका क्या हुआ जिसे मैं लेकर आया था..?
– नर्स ने जबाब दिया वही जो मुसलमान जिसकी बजह से दंगे हुए है..
– नर्स की बात सुन सिपाही बोला हाँ. मैडम वही..
इतना कहना ही हुआ था कि तभी दूसरे आपरेशन रूम से एक अन्य नर्स स्ट्रेचर पर एक और डैड बॉडी लेकर आई और उन्ही के पास आकर रुक गयी और थानेदार से बोली सर आप जिस मुसलमान को लेकर आये थे वो जिंदा नही रहा …
-थानेदार नर्स की बात सुन उसके शरीर मे बिजली सी दौड़ गयी और उसने जल्दी से पहले स्ट्रेचर को पार कर दूसरे स्ट्रेचर पर पहुँकर मृतक के मुँह से कपडा उठाया और देखा तो आरिफ का मुँह पूरी तरह से नीला पड़ चुका था और मुँह सूज कर तरबूज जैसा हो गया था…जिसकी बजह से वह बिल्कुल भी पहचान में नही आ रहा था कि वह आरिफ ही है..
-थानेदार ने नर्स से पूछा क्या यह वही है जिसे मैं अपने कंधे पर लेकर आया था..
– नर्स ने जबाब दिया हाँ सर यह वही व्यक्ति है..इसकी सारी पसलियां टूट गयी थी और सभी आंतरिक अंग फट चुके थे..जब आप इसे लेकर आये थे उसी वक्त यह मर चुका था..
– थानेदार ने यह सुना तो वह बहुत दुखी हुआ और उसकी आँखें भर आयी। और फिर उसने प्यार से उसके चेहरे पर हाथ लगाया और उसके ऊपर पड़ी चादर को भी उसके पेट तक उठाकर देखा तो उसे आरिफ के गले में सोने की माला में एक ॐ और चांद तारे का लॉकेट दिखा, जिसे देखकर थानेदार निश्चिन्त हो गया कि हाँ यह वही आरिफ है..
थानेदार ने आरिफ के मुँह को पुनः उसी कपड़े से पुनः ढंक दिया और दोनों स्ट्रेचर पर पड़ी लाशों के पैरों की तरफ जाकर खड़ा हो गया जहाँ पर पहले से ही सिपाही खड़ा हुआ था ।
थानेदार ने वहीं खड़े होकर अपनी जेब से फोन निकाला और अपनी पत्नि को फोन कर दबी और दुख भरी आवाज़ में बोला..
साफिया बेगम वानरपुरा का वह मौलबी-पंडित वानरपुरा गाँव के दंगों में मर गया जिसने हम दोनों को सात फेरे दिलाकर हमारी शादी कराई थी…।
-यह सुन थानेदार की पत्नि साफिया ने पूछा कैसे…?
किन्तु अब थानेदार कुछ जबाब नही दे सका और दोनों लाशों को एक साथ देखते हुए वह बोला घर आकर बताऊंगा । उसकी आवाज़ भर्रा गयी और आंखों से एक दो आसूं भी बाहर निकलने लगे थे …..
सोलंकी प्रशांत
8527812643
नई दिल्ली
मेरी स्वरचित कहानी है और सभी पात्र काल्पनिक और घटना मेरे विचारों की उड़ान भर है।