दूषित पर्यावरण
जल्दी सूरज छिपता सा लगता, माँ घनी अँधेरी छाई है,
कितनी गर्मी आज पड़ी है, अब ठंडी चली पुरवाई है l
दिन अभी डूबा नही है, देखो तुम बाहर आसमान को,
काले काले बादल आये, ढक लिया जिसने आसमान को l
नभ सूरज दोनो ही ढक गये, बिन गर्जन के बादल मुकर मुकर के आगे बढ़ गये,
भरे हुए ये पूरा जल, माँ क्यू ना बरसे यहाँ पे बदरा, रूठ रूठ क्यू भाग गये l
ना सावन की चले फुहारे, चिलका ने सब जला दिया,
वन जंगल सारे कटने से, कल आबादी खेत बढ़े l
प्रदुषण इतना भारी है, पर्यावरण में ज़हर घुले,
पेड़ो में वह आकर्षण है, जो बादल को खीच रहे l
हरे भरे कुछ नव पल्लव है, उनसे वर्षा का काज सरे,
जहाँ जंगल या पर्वत हरियाली, वहां बारिश होती धुआंदार l
जल मिलता है जिन नदियों को, बाढ की पड़ती वहां पे मार,
बाढ से भी वहां वृक्ष बचाते, पर्यावरण मे रहे सुधार l
जल स्तर ऊँचा हो जाता, कृषक झूमे बारम्बार ।।