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9 Oct 2020 · 1 min read

दूर मुझसे कभी गया भी नहीं

दूर मुझसे कभी गया भी नहीं
पास लेकिन मेरे रहा भी नहीं

ये तो मंज़िल का है जुनूं उसको
यूं ही तन्हा कभी चला भी नहीं

मेरी ख़ातिर वो आ गया है अब
रास्ते में कहीं रुका भी नहीं

प्यार अपनों से भी करे ज़्यादा
है पराया मगर सगा भी नहीं

बात करता रहा इशारों में
सब कहा है मगर कहा भी नहीं

ख़ूब मिलता रहा वो लोगों से
सबसे इतना मगर घुला भी नहीं

रात-दिन मस्तियों में जीता है
पर वो ख़ाली कभी मिला भी नहीं

चाँदनी रात है मुक़द्दर से
राह में दीप इक जला भी नहीं

है न ‘आनन्द’ प्यार किस्मत में
रब से लेकिन कोई गिला भी नहीं

– डॉ आनन्द किशोर

1 Like · 367 Views
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