दूर निकल आया हूँ खुद से
गीत…
दूर निकल आया हूँ खुद से,
अब वापस है जाना मुश्किल।
सम्बन्धों का वह अपनापन,
ज्ञात हमें है पाना मुश्किल।।
जान गया हूँ प्यार हृदय का,
कैसे पत्थर हो जाता है।
कैसे मिलता था जो अर्पण,
अब मिलने से कतराता है।।
जब चुभने लग जाये दर्पण,
होता रूप बसाना मुश्किल।।
दूर निकल आया हूँ खुद से,
अब वापस है जाना मुश्किल।
शंकाओं से लड़ते- लड़ते,
खुद में इतना टूट गया हूँ।
लगता है ज्यों बीच भँवर में,
आज अकेला छूट गया हूँ।।
सुनकर जो आ जाते थे झट,
उनको पास बुलाना मुश्किल।
दूर निकल आया हूँ खुद से,
अब वापस है जाना मुश्किल।।
वो क्या समझेंगे ना समझे,
जो भावों की डोर सुकोमल।
कर पाया इससे ना मन की,
दुविधाओं का मैं कोई हल।।
भाप नहीं पाये जो उलझन,
उनको दर्द दिखाना मुश्किल।
दूर निकल आया हूँ खुद से,
अब वापस है जाना मुश्किल।।
जीना तो है ही दुनियां में,
दिखलाने को हँसना भी है।
एक बहाना उम्मीदों का,
इन आँखों में बसना भी है।
लेकिन अपनेपन में खोकर,
कोई गीत सुनाना मुश्किल।
दूर निकल आया हूँ खुद से,
अब वापस है जाना मुश्किल।।
दूर निकल आया हूँ खुद से,
अब वापस है जाना मुश्किल।
सम्बन्धों का वह अपनापन,
ज्ञात हमें है पाना मुश्किल।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)