दूर जाना है
गीतिका…!
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दूर जाना है
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कभी तो सोच ले मन रे ,कहाँ तेरा ठिकाना है ।
सभी कुछ छोड़ कर तुझको, यहाँ से दूर जाना है ।।
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नहीं कोई यहाँ तेरा, सभी लगते मगर अपने ।
सभी के साथ में रिश्ता , तुझे अपना निभाना है ।।
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मिलीं जो चन्द साँसें हैं, कभी तो खत्म होंगी ही ।
मिला जो कर्ज़ मालिक से , तुझे उसको चुकाना है ।।
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सभी की एक सी राहें, सभी की एक सी मंजिल ।
जरा तो सोच ले वैभव, तुझे किसको दिखाना है ।।
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न कुछ भी साथ लाया था, न कुछ भी साथ ले जाये ।
कमाया क्या तुझे जाकर वहाँ उसको बताना है ।।
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बड़ी चिन्ता लगी तुझको, घराने को चलाने की ।
जरा ये तो बता पगले कि तेरा क्या घराना है ।।
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कभी जलचर बना नभचर ,कभी थलचर बना रेंगा ।
न जाने और कितने खोल में तुझको समाना है ।।
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बड़ा बेदर्द हाकिम है , रहम किंचित नहीं करता ।
उसी के सामने ये सिर पड़े तुझको झुकाना है ।।
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नयन झुकने नहीं पायें, मुकदमा जब चले तेरा ।
बही खाते लिखे खुद ही , करेगा क्या बहाना है ।।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
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