दूर क्षितिज के छोरों से…..
दूर क्षितिज के छोरों से
इंद्र धनुषी रंगीं डोरोंं से
आते संदेशे प्रणय-भरे
हवा के मस्त झकोरों से
स्मृतियाँ छन-छन आतीं
गुजरे हसीं उन दौरों से
झाँकती उषा उझक कर
बचके निशा के पहरों से
चली आई भोर सुहानी
भू के अजस्र निहोरों से
गूँज रहीं सकल दिशाएँ
पंछी की अस्फुट रोरों से
लजाती सकुचाती कली
गुनगुन करते भौरों से
महक रहा उपवन सारा
अमुवा की भीनी बौरों से
हिम-बिंदु ढुलकते ढलते
पुष्प-नयन की कोरों से
पंछी प्यास बुझाते देखो
वृक्षों पर लगे सकोरों से
कुदरत के क्रीडांगन की
क्या मिसाल दूँ औरों से
चल बैठें ‘सीमा’ चंद घड़ी
बचकर जग के शोरों से
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)