दूरियाँ
हमारी आपसे बातें नही होती,
छोटी- बड़ी मुलाकातें नही होती,
कभी तो बढ़ जाती थी आपकी इक आहट से,
आज वो धड़कने बेखबर सी हो गयी,
कुछ इस कदर बढ़ी ये दूरियाँ,
दिल तक नहीं पहुंचती दिल की वो आवाज़ बेअसर सी हो गयी,
जब कभी तस्वीर देखती है ये नज़रें आपकी,
पलक झपकती ही नहीं,
दिल मुस्कुराता है होंठ बयाँ नही कर पाते,
कभी रात के अंधेरे से एक सिसकी सुनाई देती है,
दिल कहता है बस भी कर अब सुबह होने वाली है,
ये बेसबर नज़रें तलाशती है तुम्हें,
ज़ुबाँ कहती है वो दूर है तुझसे अभी और भी दूरी होगी,
दिल मुस्कुरा के पूछता है ,
कभी तो ये तलाश पूरी होगी,
दोनों कह भी नही पाते,
एक दूसरे के लिए दोनों कितना तरसते है,
कम्बख्त कसूर न उनका है न हमारा,
पर सज़ा दोनों भुगतते है।
✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी