दूध और चाय की प्याली
दूध और चाय की प्याली
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दूध और चाय की प्याली
जंग छिड़ गई बहुत भारी
दूध की प्याली यूँ बोली
कान कर सुन चाय प्याली
रंग में काली कलोटी ही तू
चूल्हे पर सड़ के सड़ती तू
लोगों के नर्म दिल जलाती
और लाल जिह्वा है सड़ाती
जो भी ले लेता है तेरा घूंट
तन अदर तक जलाता घूंट
जो तू अगर ठंडी हो जाती
धरती पर हो फैंकी जाती
मैं देखो कितनी गोरी गोरी
कितनी ज्यादा हूँ गुणकारी
रहती हूँ खूब सेहत बनाती
सभी का हूँ दिमाग बढाती
काहे को तुम हो अकड़ती
मेरे बिन तुम नहीं हो बनती
सभी खरते हैं मेरा गुणगान
सुन लो तुम चाय बदनाम
ये सुन कर चाय यूँ भड़की
सुनने को हो जाओ तकड़ी
बेशक चाहे तुम गोरी गोरी
तुम तो हो सुस्ती की बोरी
जो भी तुम्हे जब पी लेता
आलस्य निज में भर लेता
अमीर तक तुम हो सीमित
गरीबों को ना मिलती नित
सब की पहुंच से हो बाहर
काहे को उगलती हो जहर
पानी में जब जाती है मिल
लोगों का दुखाती हो दिल
नित महंगी होती जाती हो
काहे को तुम इठलाती हो
बच्चा,बूढ़ा या फिर बीमार
मजबूरी में तुम्हे पीता यार
मत कर खुद पर तू गुमान
सुन लो तुम दूध हो नादान
मैं हूँ जन जन तक मिलती
किसी को नाराज ना करती
नर ह़ो चाहे हो कोई स्त्री
मजदूर हो चाहे हो मिस्त्री
करती रहती सभी गतिशील
मुझे पी कर होते क्रियाशील
तुम तो अपनों तक है रहती
मैं आए गए का मान बढ़ाती
हर दर तक जाती हूँ पहुंच
रंक,राजाऔर हर जन बीच
सुन ले तुम मेरी प्यारी बहना
गरीब का मैं मौके का गहना
तुम तो रहे अमीर तक रहना
जानती जन जन को हूँ बहना
फिर भी सदा रहती हूँ शान्त
किसी प्रकाश का नहीं भ्रान्त
जो भी जन मुझे है पी जाए
रहे रहता सदा मेरा गुण गाए
पल में मैं जाऊँ सब को मिल
जलाती नहीं दिल तिल तिल
सुखविन्द्र सभी के हूँ करीब
अमीर हो या चाहे हो गरीब
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)