दुश्वार जिंदगी
कोई भला किस तरह करे बयां,
अपने दिल के जज्बातों को यहाँ।
उठा रखे है ज़हन ने भी सवाल,
कैसे बदलेंगे आखिर हालात यहाँ।
हालातों ने लगाये जुबानो पर ताले,
होंठो को सी बैठा है हर शख्स यहाँ।
मायूस हो तन्हाई में कैद हो जाएँ,
यह भी दिल को गवारा है कहाँ ?
ख़ामोशी को लफ़्ज़ों का सहारा देंदे,
मगर कलम पर भी पहरा है यहाँ।
शिकायत किस से करें और गिला!
फ़िज़ूल है सब कौन सुनेगा यहाँ?
हो गयी है जिंदगी दुश्वार इस कदर,
अपनों ने ही घोला है ऐसा ज़हर यहाँ।
हो गयी है जिंदगी दुश्वार इस कदर,
अपनों ने ही घोला है ऐसा ज़हर यहाँ।