दुश्मन भी मेहरबान
कौन कहता है यह इंसान नजर आते हैं
अब निगहबान ही हैवान नज़र आते हैं
कल यह भाई थे पड़ोसी जो बने बैठे हैं
अब सिमटते हुए दालान नज़र आते हैं
मैं मकाँ बेच रहा हूं जो यह खबरें फैलीं
अब तो दुश्मन भी मेहरबान नज़र आते हैं
कल यहाँ पर भी कई ईट के जंगल होंगे
आज खुशहाल जो मैदान नज़र आते हैं
तितलियों ने ही ठिकानों को बदल डाला है
कितने मायूस से गुलदान नज़र आते हैं
आइना इनको दिखाना है ज़रूरी अरशद
साफ़ सुथरे जो गिरेबान नज़र आते हैं