दुश्मनों के नगर में,
दुश्मनों के नगर में घर रखना।
उसपे ऊँचा भी अपना सर रखना।।
में तो कैसे भी जाँ बचा लूँगा।
तू मगर इंतजाम कर रखना।।
हाँ मुक़ाबिल में तोपें आएँगी।
आप पत्थर से जेब भर रखना।।
दुश्मनों पर नज़र रहे लेकिन।
दोस्तों की भी कुछ ख़बर रखना।।
नोंच लेना क़बायें जिस्मों से।
और चादर मज़ार पर रखना।।
कर ना डाले अदब की रूह घायल।
तेरा ग़जलें इधर उधर रखना।।
——–√अशफ़ाक़ रशीद“