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8 Apr 2023 · 1 min read

#दुविधा पर्व

✍️

★ #दुविधा पर्व ★

ग्रहमंडल में प्राण हैं
पादान मध्य उत्तान हैं
स्वेदकणों को विश्राम दे
बिन जिये नहीं त्राण हैं
धनुष उठा ग्रीवा कर सीधी
शत्रु तेरे मन तेरे विराजमान हैं
शल्य नहीं मैं कृष्ण सखे
देख ! किधर तेरे बाण हैं

शल्य नहीं मैं कृष्ण सखे . . . . .

सांसों की चिरैया सुहासिनी
तन-उपवन की वासिनी
स्मृतियों में बस रही
इक पितरज्योति सुभाषिणी
घर-आँगन जीवन-मरण
जग और जगतनियन्ता धारिणी
पदछाप निहारे विश्व हिन्द के
युगों से न्यून न इसमें काण हैं

शल्य नहीं मैं कृष्ण सखे . . . . .

साहस शौर्य बुद्धि असि की धार हो
दुविधा मन में न कोई विकार हो
सिंहगर्जन बिन समस्त प्रान्त में
सहमा-सहमा सियार हो
कौन सुने कब तक उसकी
मन जिसके न निज-सत्कार हो
हे नाव को खेने वाले
परदेसी बोलों से लहरें अनजान हैं

शल्य नहीं मैं कृष्ण सखे . . . . .

नियति कुनीति से जब हारी
नंदनवन कानन विपदा भारी
मर्यादा सब तार-तार हुई
गिलहरी हो गए पटवारी
तैंतीस घायल तीन मरे महाभारत में
आंकड़े मिलते सरकारी
हो न सका तू कर न सका
दुराग्रह दुरावस्था के सोपान हैं

शल्य नहीं मैं कृष्ण सखे . . . . .

यूँ तो है तू वाचाल बहुत
प्रश्नों के उत्तर सूझें तत्काल बहुत
आ दे जा जीने का ढंग हमें
खड़ा हाथ पसारे जग है कंगाल बहुत
कथा अधूरी चक्रव्यूहभेदन की
विजय माँगती मित्र ! देखभाल बहुत
जननी जो कहसुन न सके
संगिनी बाँचती समस्त पुराण हैं

शल्य नहीं मैं कृष्ण सखे . . . . . !

~ ९-१०-२०१७ ~

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Hindi
90 Views
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