दुल्हन पिया घर चली
******** दुल्हन पिया घर चली (गीत)*********
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लाल जोड़े में सज धज तैयार दुल्हन पिया घर चली,
सूना कर के बाबुल का द्वार दुल्हन पिया घर चली।
दुनिया सदियों से ये बात,है सदा कहती ही आई,
बेटी माँ बाप के घर में सदैव होती है पराई,
पिता की पगड़ी की रख लाज दुल्हन पिया घर चली।
सूना कर के बाबुल का द्वार दुल्हन पिया घर चली।
मनमोहिनी मनोरम मूरत मन मोहिती हर किसी का,
भोली भाली भावुकता भरी भार्या भरे मन सभी का,
आँखों मे डाल कजरे की धार दुल्हन पिया घर चली।
सूना कर के बाबुल का द्वार दुल्हन पिया घर चली।
दूल्हे ने दुल्हन की सिंदूरी रंग से मांग सजाई,
ताली बजा कर नाच गाकर नव दम्पति को दी बधाई,
ढोल नगाड़ों के साथ साथ है दुल्हन पिया घर चली।
सूना कर के बाबुल का द्वार दुल्हन पिया घर चली।
मनसीरत महकता महक से आँगन हुआ सूना सूना,
बेटी की शादी में तात सजाया घर का कोना कोना,
देकर पीहर को खुशियाँ हजार दुल्हन पिया घर चली।
सूना कर के बाबुल का द्वार दुल्हन पिया घर चली।
लाल जोड़े में सज धज तैयार दुल्हन पिया घर चली।
सूना कर के बाबुल का द्वार दुल्हन पिया घर चली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)