दुलहिन
दुलहिन
धनि हे सखि, से दुलहिन साजल,
कते कलेवर शोभे हे।
सिंदूर रेख, माँग भरोहल,
कुन करू हे बखान।
कज्जर आँखि, कमल-दल लोचन,
सोभा अति अभिराम।
बिन्दी ठाढ कपोल-माथ,
चुमकि चमकि ललाम।
कनक-हंसुली, पियर गहना,
कनक-कंचुक तन शीतल।
पायल बाजै ससुर-घर आगन,
धनि केर ठाढ़ि सहेल।
श्रीहर्ष कहए सुनु सखि हे,
धनि साजल बनल अपार।
पिया मिलनक बेरु अयल,
उमंग अति हत पियार।
——श्रीहर्ष