दुलहन
“दुलहन ”
कुमकुम थाल पर पग रखकर ….
ससुराल की देहरी पार करी
कितने उमंग और उल्लास लिए मन में
साथ में दुविधाएं भी है साथ खड़ी।
नया परिवेश नये लोग नया संबंध….
सहयोग की भावना है कम….
पर लब में है मुस्कान बड़ी ।
अनिश्चित भविष्य की कल्पना ले
विविधता से भरे इस परिवेश में
फैले खुशी और आनंद का उजास
उषा के आलोक में हो असीम उल्लास।
खुली पलक..ससुराल का प्रथम प्रभात
हृदय की धक-धक….भीतर से उभरती है अपार
पर स्नेह सा प्रिय रूप देखकर
पाता है दिल अद्भुत साहस का संचार
मेरा गहना है मेरी मुस्कान
मुझ में रचा बसा है मेरा संस्कार
स्वरों में ध्वनित हो फिर अम्लान
रच बस जाऊंगी यहाँ
जैसे काँस और सिवार
-रंजना वर्मा