दुर्मिल सवैया
दुर्मिल सवैया 8 सगण
कलम घिसाई दुर्मिल छंद 4 सगण प्रत्येक पंक्ति।
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पतवार लियो जब हाथ सखा,
जलधार बही मञ्झधार सखा।
सबको मरना शत बार सखा,
लगता जब जीवन भार सखा।
तब राम करें सब काम सखा,
वरना सब काम तमाम सखा।
कहते सुनते सबकी बतियाँ,
गुजरी सदियाँ बिन दाम सखा।
जब नोट बड़े सब बन्द हुए,
हड़ कम्प मचा हर धाम सखा।
फिर चोर भये सब साथ सखा,
उतरे सड़को पर रात सखा।
अब कोर्ट गए सब तात सखा,
दिखता उनको प्रतिघात सखा।
किसका कितना धन डूब गया,
बकवास करें बिन बात सखा।
****** मधु गौतम