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15 Jun 2023 · 1 min read

दुर्मिल सवैया

सबसे मिलना अपनेपन से, सबमें वह ईश्वर ही रहता।
सब ही उसकी मरजी पर है,मन साफ रखो वह है कहता।।
अब छांव रहे बिखरी बिखरी,हर मानव धूप न हो सहता।
दुख का न कहीं तिनका भर भी,सुख का शुचि सा दरिया बहता।।

रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©

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