दुर्मिल सवैया
सबसे मिलना अपनेपन से, सबमें वह ईश्वर ही रहता।
सब ही उसकी मरजी पर है,मन साफ रखो वह है कहता।।
अब छांव रहे बिखरी बिखरी,हर मानव धूप न हो सहता।
दुख का न कहीं तिनका भर भी,सुख का शुचि सा दरिया बहता।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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