दुर्मिल सवैया :– भाग –5 चितचोर बड़ा बृजभान सखी ॥
दुर्मिल सवैया छंद :– भाग -5
चित चोर बड़ा बृजभान सखी ॥
8 सगण / 4 पद
रचनाकार :–अनुज तिवारी “इंदवार”
॥ 14 ॥
इक रूप अनूप अनूठ धरे ।
प्रभु द्वापर में अवतार लिए ।
कर चक्र धरे धनु शारंग थी ।
भुज चार सभी हथियार लिए ।
मणि कौस्तुभ शोभित थी वक्ष में ।
वनमाला विभूषित हार लिए ।
मुख श्याम सुशोभित तेज बड़ा ।
चित चंचल भाव उदार लिए ।