#दुर्दिन_हैं_सन्निकट_तुम्हारे
#दुर्दिन_हैं_सन्निकट_तुम्हारे
______________________
नयनों में निष्ठुरता के जब,
भाव समाने लग जायेंगे।
प्रतिशोध के लिए उर में जब,
दाव समाने लग जायेंगे।
सत्य यही समझो तब प्यारे,
दुर्दिन हैं सन्निकट तुम्हारे।
मर्यादा की लक्ष्मण रेखा,
लांघ अधर्मी बन जाओगे।
इच्छाओं के मद हो अंधे,
तुम अपकर्मी बन जाओगे।
स्वयं खड़े अपहति के द्वारे,
दुर्दिन हैं सन्निकट तुम्हारे।
अनुकम्पा से रिक्त हुआ मन,
जैसे दुष्ट स्वजन कुल घालक।
दुर्व्यसनो से लिप्त लगे तन,
उच्छृंखल मतिमंद हो बालक।
कर्मेन्द्रिय सु-कर्म से हारे,
दुर्दिन हैं सन्निकट तुम्हारे।
द्वेष लोलुपता क्षोभ भरा मन,
वक्ष कपट से हुआ लबालब।
सत्ता सिद्धि करें यह इच्छा ,
पाल उपद्रव करे बेमतलब।
भाव अहम का लेकर उर में,
समझ रहे सब वारे-न्यारे।
दुर्दिन हैं सन्निकट तुम्हारे।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’