“दुर्दिन”
दुर्दिन
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सब वक्त के गुलाम है यहां,
कौन,किसको व्यथा सुनाएगी?
लगता है कब ह्रदय गति!
क्षणिक है रुक जाएगी।
अंत काल अब शेष नहीं,
तन पंचतत्व में विलीन हो जाएगा,
ढल रहा सूरज आंखों में,
सुबह की नई किरण, कहां से आएगी?
मन में तैर रही जो झिलमिल सी खुशियां,
वो अपनापन का एहसास है,
उसकी उम्मीद भी धूमिल है अब,
दुर्दिन में संग कौन जाएगा?
वर्षा (एक काव्य संग्रह)से/ राकेश चौरसिया