दुर्दमनीय तलवारें लिखें !
दुर्दमनीय तलवारें लिखें !
विश्व धरातल पर हुए अक्षम्य, इतिहासों के लिकों को लिखें ,
मानवता के गहनों के विध्वंसक चीखों को लिखें !
प्रतिमानों के स्तम्भों पर हुए, भयावह पशुता को लिखें ;
पुण्यभूमि पर विविध विग्रहों के , लूटी गयी शुचिता लिखें !
सभ्यता संस्कृतियों पर हुए , बर्बर असंख्य आघातों से सीखें ,
स्वतंत्रता के स्वर्ण विहानों पर , क्रूर संघातों से सीखें !
दया-दान-सत्कर्म-धर्म, के प्रबल प्रतापों को लिखें ,
वीरों के वक्षस्थल पर विराट , ज्वाल- तापों को लिखें !
वीरों के चिंतन विराट , पुण्य सुदीर्घ प्रतापों को लिखें ;
रण में -वन में- समरांगण में , घोर शत्रु विलापों को लिखें !
अभी समर भयंकर है भारी , भैरवी-रणचण्डी, हुंकारें लिखें ;
अखण्ड भारत विस्तारों में , शत्रुञ्जय दुर्दमनीय तलवारें लिखें !
अखण्ड भारत अमर रहे !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
पौष शुक्ल षष्ठी