दुर्गा वंदना शोभन छंद (सिंहिका)
शोभन छंद ( सिंहिका)
14/10=24
अंतिम जगण जरूरी है।
दुर्गा वंदना
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गीता रामायण पढिये,
खूब सोच विचार।
कदम कदम हो सहायता,
लगे नाव किनार ।
सीता राम कहो प्यारे,
कुछ नहीं उपाय।
काली नाम सुमरन करो,
दिन रात चितलाय।
तरकश बान छूटें नियम,
भगें घायल सूर ।
जले निरन्तर दीप भक्ति,
हिय महके कपूर।
तूती बोल रही कांपे,
सभी संत सुजान ।
निशचर बढ़ रौब दिखावें,
रक्त बीज समान ।
मैया दुर्गा खडग चला,
बाहर कर जबान ।
हम करें वंदना तोरी
कोई ना निदान ।
बूंद गिरे न धरन अंबे,
कर दे साफ मात ।
पीड़ा हरण सब तव शरण ,
दुष्टन एक जात ।
संतन भूमि सुखी कर दे,
यही धर्म पुकार।
है घनघोर लडाई माँ
लख भर ले हुकार ।
खप्पर भरो खचाखच खूं,
सिर काट ,हर प्रान।
भारत भर से दुष्टों का,
मिटे नाम निशान ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
15/4/23